फागुनी दोहे ............
कासे कहूँ मन बतियाँ ,आवत मोहे लाज ॥ 
रंग गुलाल अबीर से, चुनरी भीजे अंग 
फागुन आया झूम के, तन मन उठे उमंग ॥ 
छेडो  न ऐसे मोहे, समझो  भोली नार 
फागुनी पुरवाई है ,रंगीली मनुहार ॥ 
शकुंतला तरार  3 0 -0 3 -2 0 1 3 

