Wednesday, July 3, 2024

आंचलिक   लेख---

बस्तर का पारम्परिक  नृत्यः छेरता, (छेरका, छेरछेरा)

छेरता तिहार और गीत-नृत्य

            फसल वास्तव में लक्ष्मी का स्वरूप है । चार माह के अथक परिश्रम के बाद खेतों में धान की बालियाँ जब लहलहाती हैं देखकर किसान का मन गदगद हो जाता है, फिर आता है उसकी मेहनत को घर लाने का समय यानि फसल की कटाई का । फसल काटकर घर में आ जाता है तो फिर शुरू होता है धान की मिंजाई का समय | उसके लिए मौसम के अनुमान का  ग्रामीण अंचलों में भी वे किसान या लोग जिन्हें पुस्तक बाँचना भी नहीं आता चाँद उनके लिए प्रमुख ज्योतिषी होता है। वे चाँद के बढ़ने और घटने के साथ ही अपना सारा समय नियत करते हैं कब कौन सा पर्व उत्सव आएगा ? आज दूज का चाँद या चौदहवीं का चाँद है,  आधे से अधिक ग्रामीण अनुमान लगाने का यह ज्योतिषीय गणित जानते हैं । पंजिहार भी होते हैं गावों में जिन्हें मेड़गंतेया भी कहते हैं, ये ग्रामीण संस्कृति और कृषि संस्कृति के संवाहक होते हैं । धान की मिंजाई होकर घर में साल भर के लिए सुरक्षित अनाज रख लिया जाता है | मेरे बाबा रतनलाल देवांगन सबको यानि गाँव के वे लोग जो इसकी पात्रता रखते हैं | गावों में रिवाज है कि फसल की मिंजाई के बाद किस-किस को अनाज वितरित करना है जो उनका साल भर का अधिकार होता है | उन्हें देने के लिए एक बोरा  धान अलग से निकाल कर रखते थे इसी वजह से मुझे यह ज्ञात है । फिर उसमें से कुछ धान बजनेया यानि देवता काम जैसे जतरा में, मेला में ये बजनया निशुल्क बाजा बजाने आते हैं नियम के अनुसार जिसके बदले सभी किसानों के यहाँ से इन्हें अन्न का दान दिया जाता है जो कि इनका अधिकार है | फिर आते हैं, गाय-बैल चरवाहा जो चौमासा में गाय बैलों को चराते हैं ताकि वे किसी के खेतों में घुसकर फसल नष्ट न कर सकें, गाँव के गाँयता, पुजारी तो कुछ पारदीन, ( टोकनी सूपा  आदि कृषि उपयोगी वस्तुएँ बनाकर देने वाली को पारदीन कहते हैं) आदि के लिए रखकर कुछ धान छेरता पुन्नी के नाम पर भी सुरक्षित होता है । दरअसल छेरता फसल कटाई के बाद के हर्ष का पर्व है। यह किसान अपनी मेहनत की कमाई साल भर के लिए घर में संग्रहीत करता है धान की ढूसी देख-देख वह ख़ुशी से गदगद होता है वहीँ गाँव के बच्चे जिनके खेत हों या न हों, खुशी की अभिव्यक्ति के बतौर छेरता (छेरछेरा) मनाते हैं । आज के परिप्रेक्ष्य में हम इसे ग्राम्यांचल का पिकनिक कह सकते हैं जिसे ये युवक, युवती और बालक –बालिकाओं का समूह बड़े मनोयोग से नृत्य और गीतों की प्रस्तुति करके अनाज, सब्जी, फल, पैसा आदि प्राप्त करते हैं |

गाँव के युवाओं की टोली बनती है, जिसमें लड़कों की अलग टोली और लड़कियों की टोली अलग होती है । शाम के वक्त ये टोलियाँ प्रत्येक घर के सामने जाकर नाचते हैं जहां से इन्हें नगद राशि के अलावा अनाज जिसमें धान, चावल, कोचई अर्थात किसानों के यहाँ उत्पन्न होने वाली खाद्य सामग्री प्राप्त होती है । मेरी माँ जमुना बाई सूपा में निकालकर सारी सामग्री और कुछ पैसे छेरता नाचने आए बच्चों को देती थी वहीँ पुन्नी नाचने वाली युवतियों एवं बच्चियों को भी यही सब दिया जाता था । पुन्नी नाचने वाली युवतियों और बच्चियों के दो ग्रुप होते हैं, जिसमें से एक ग्रुप युवतियों द्वारा जो नृत्य किया जाता है उस नृत्य को कुड़दुमदुम  कहा जाता है और बच्चियों के गीत को तारा गीत कहते हैं | बच्चियों द्वारा केवल गीत गाए जाते हैं जबकि युवतियों द्वारा नृत्य की भूमिका निभाई जाती है । युवाओं द्वारा छेरता नाचने में जो मुख्य  पात्र होता है उसे नकटा या विदूषक भी कहते हैं । पूर्णिमा से कुछ दिन पहले से शुरू होकर पूर्णिमा के दिन छेरता नृत्य समाप्त हो जाता है । चूँकि यह पूस की पूर्णिमा को समाप्त होने वाला नृत्य है अतः इसका प्रचार-प्रसार उस ढंग से नहीं हुआ जैसे कि इसकी कला की कुशलता है । खासकर पूस पूर्णिमा के दिन ही इस नृत्य गीत की प्रस्तुति की जाती है | छेरता नृत्य गीत बस्तर की सीमा से लगे ओड़िसा प्रांत में भी कहीं-कहीं दृष्टिगोचर होता है और नारायणपुर सीमा से लगे महाराष्ट्र, कुछ आंध्र प्रदेश की सीमा में पाए जाते हैं ।

1-युवाओं की टोली --छै, आठ, दस की संख्या में युवाओं की टोली होती है । इस टोली में एक विदूषक होता है जो युवाओं के बीच में खड़ा होता है और बाकी युवा उसे अर्धचन्द्राकार घेरा बनाकर खड़े हो जाते हैं पश्चात् युवाओं द्वारा गाना गाए  जाने पर  नकटा अपने मुँह से हुर्र-हुर्र की ध्वनि या सिटी की आवाज़ निकालता है जिसे हुलकी पाड़ना कहते है विदूषक को नकटाकहते हैं जिसे संबोधित कर बाक़ी लोग गीत गाते हैं विदूषक द्वारा एक मुखौटा लगाया गया होता है या खड़िया से चेहरे का मेकअप किया होता है । बाकी लड़के भी कमर से रंगीन धोती, रंगीन कमीज, सर पर पागा, पागा में कलगी गले में साज सिंगार की वस्तुएं माला,मोती, कमर में फेंटा, हाथों में कड़े सबके हाथ में एक लाठी जिसे पटक-पटक कर वे गायन करते हैं जिससे गायन के सुर के साथ ताल मिलाई जा सके। ये अर्ध चन्द्रमा आकर में आधा गोल घेरा बनाकर खड़े हो जाते हैं और जब लाठी पटक-पटक कर गीत गाते हैं तब विदूषक या नकटा हुलकी पाड़ते हुए हुर्र-हुर्र की ध्वनि निकालता है लाठी की आवाज, गीतों के बोल और विदूषक की आवाज तीनों का संगम सुनने और देखने वालों के लिए आनंददायक क्षण होता है ---गीत के बोल कुछ इस तरह हैं----

झिरलिटी झिरलिटी पंडकी मारा लिटी रेय

नकटा छेरछेर।।

आदन डारा धंवड़ा डारा टोंड के धरली कसा

लासा काजे झगड़ा होला माहरा आरू दसा रेय

नकटा छेरछेर।।

आव डोकरी छंडायला तोके देबू रोटी

रोटी पीठा के काय करबू बड़े बाप चो बेटी रेय

नकटा छेरछेर ।। (रतनलाल देवांगन)

लड़कियों के गीत दो प्रकार के होते हैं-

2-युवतियों की टोली -- इनमें भी एक मुख्य पात्र होता है जिसे नकटीकहा जाता है, साड़ी में लिपटी होती है और साड़ी का ही वह घूंघट डालकर रखती है ताकि उसके चेहरे को कोई अन्य न देख सकें । कमर में करधन मोटा या पतला वह उसके सामर्थ्य के अनुसार होता है वह गीत के सुर में लय और ताल मिलाते हुए दोनों पैरों से जमीन पर इस तरह नाचती है कि वह अपने ही स्थान पर खड़ी होती है और दोनों पैरों से सामने एक ही स्थान पर कूदने जैसी प्रक्रिया करती  है मगर कमर को थोड़ा झुकाकर, पैरों में घुंघरू बंधे होने के कारण छन्न-छन्न की ध्वनि उत्पन्न होती है हाथ में मोर के पंखों का गुच्छा होता है जिसे एक बार दायीं ओर एक बार बायीं ओर कंधे से लगाती हैं दृश्य बड़ा ही मनमोहक होता है शेष लड़कियाँ भी कहीं लाल साड़ी, कहीं सफ़ेद कोष्टउहाँ साड़ी किनारी वाली या फिर रंग बिरंगी साड़ियों से सुसज्जित, हाथों में चूड़ी पटा , गले में सूता-पुतरी, करीने से सजा हुआ जूड़ा, जूड़े में लाल रिबन के फूल, कान में खिलवाँ, नाक में फुल्ली, पैरों में पयंड़ीएगहने कांसा, पीतल, गिलट या कौड़ी आदि के भी हो सकते हैं, आदि श्रृंगार कर के अर्ध चंद्राकार में खड़े होकर गीत गाती हैं जब वे गीत गा रही होती हैं उस वक्त यदि कोई जान पहचान का मिल गया तो ये शर्माने से भी नहीं चूकतीं इनके गीतों में युवाओं के लिए संबोधन ज्यादा होता है  जिसमें छेड़छाड,़ उलाहना के शब्दों का प्रयोग किया जाता है।

----गीत कुछ इस तरह ---

कुड़दुमदुम कुड़दुमदुम बाजा बाजीला आया

कुड़दुमदुम कुड़दुमदुम बाजा बाजीला

कोनर गाँवर धंगड़ी नाचीला आया

कोनर गाँवर धंगड़ी नाचीला

अंचीला पंचीला चिवड़ा कुटईला आया

अंचीला पंचीला चिवड़ा कुटईला

चिला रो माछ मागर झलप लुकईला आया

चिला रो माछ मागर झलप लुकईला

कांदुल बाहना

कांदुल बाहना तेबे गोरी रे कांदुल बाहना

ए गांवर लेका मन के मारा गाहना

मारा गाहना तेबे गोरी रे  मारा गाहना

सिरीस पतरो

सिरीस पतरो तेबे गोरी रे सिरीस पतरो

ए गांवर लेका मन एके बतरो (जमुना बाई देवांगन)

3-छोटी बच्चियों की टोली----( तारा गीत) एक टोकनी में थोड़ा धान रखकर उस धान के बीच में एक दीपक जलाकर उस टोकनी को सर पर रखकर प्रत्येक घर के आगे जाकर टोकनी जमीन पर रखती हैं और घेरा बनाकर गीत गाती हैं । इस दृश्य को देखकर यह आभास होता है जैसे छत्तीसगढ़ के मैदानी क्षेत्रों में सुआ नृत्य किया जाता है शायद तारा गीत भी वैसा ही होगा किन्तु तारा गीत में सुआ नहीं होता हाँ थोड़ा धान रखकर उसके बीच में एक दीया रखकर टोकनी के बाजु से अर्धचंद्राकार  खड़े होकर गीतों का ही गायन किया जाता है । ये बच्चियाँ रंग दृबिरंगी पोशाकों में होती हैं इनके वस्त्र  फ्राक होते हैं । पहनकर यहाँ जब हम गीत गायन करते हैं तब पाते हैं कि इस गीत में कुछ शब्द उत्तर बस्तर की तरफ बोलने वाली लोक बोली की तरह है कुछ हल्बी और कुछ भतरी अर्थात लगभग सम्पूर्ण बस्तर क्षेत्र में छेरता नृत्य होता है ।

पुनी ओ झुनी ओ

ठबक नाकी डुआ नाकी पोए-पोए

अंडा चो घर बनालें

पखना चो गुड़ी गुड़ी

छेंव-छेंव मोटियारी नाचे

मांझा ने बुड़ी- बुड़ी

(कारी कुकडी करकराए

कुसियारिन सेवे सेवे )

आव डोकरी छंडाऊक लाय

तुके दयंदे रोटी

रोटी पीठा के काय करेदे

बड़े बाप चो बेटी रेय

बड़े बाप चो बेटी

कांदा जागीला री कांदा जागीला

झटके बिदा दिहा बाई मन

पुनी भागीला री पुनी भागीला ।।

इन तीनों नृत्य गीतों में एक बात सामान्य है और वह यह कि गाने और नृत्य के समय सभी युवक, युवतियों का चेहरा किसान के घर के मुख्य द्वार की ओर होता हैइस जनजातीय नृत्य में गांव के अन्य पिछड़े वर्ग के लोग भी सम्मिलित होते हैं।शहर वालों की भाषा में हम जिसे पिकनिक कहते हैं उस एकत्रित सामग्री को पौष पूर्णिमा के बाद सुविधानुसार किसी दिन ये युवक या युवतियाँ, बच्चियों की टोलियाँ  सामूहिक रूप से भोज का आयोजन करते हैं । इस तरह छेरता या छेरछेरा का पर्व हँसी ख़ुशी के साथ ही सामूहिक भोज के साथ सम्पन्न होता है। दरअसल यह जनजातीय नृत्य सामूहिक एकता भाईचारे का भाव प्रदर्शित  करने वाला त्यौहार होता है ।

                                                                                                                        शकुंतला तरार

प्लाट नं.-32, सेक्टर-2, एकता नगर,

गुढ़ियारी रायपुर (छ.ग.)

 

 

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