एक ग़ज़ल आप सबके लिए….
उनके सपने बिखरने लगे
आशियाने उजड़ने लगे
प्यार से जो बनाया था घर
कंक्रीटों में बदलने लगे
शाम ढलते ही रोया बहुत
अपने साये बिछुरने लगे
गाँव के खेत खलिहान घर
राजधानी में ढलने लगे
पाके दौलत अचानक युवा
आदतों से बिगड़ने लगे …… शकुंतला तरार
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