Friday, March 29, 2013


फागुनी दोहे ............

इन्द्रधनुषी रंग में ,पिया रँगी मैं आज 
कासे कहूँ मन बतियाँ ,आवत मोहे लाज ॥ 

रंग गुलाल अबीर से, चुनरी भीजे अंग 
फागुन आया झूम के, तन मन उठे उमंग ॥ 

छेडो  न ऐसे मोहे, समझो  भोली नार 
फागुनी पुरवाई है ,रंगीली मनुहार ॥ 
शकुंतला तरार  3 0 -0 3 -2 0 1 3 

Thursday, March 28, 2013

वह बहुरंगी होली  वह बहुरंगी रूप 
होली के सतरंगी  पावन अवसर पर  
मित्रों को हार्दिक शुभकामनाएं . नई  दुनिया के होली विशेष अंक में मेरी रचना ....छपी है जिसका शीर्षक है वह बहुरंगी होली  वह बहुरंगी रूप