Thursday, January 15, 2015

जल,जंगल,जमीन हमारा नहीं


रायपुर /16-01-2015 / नई दुनिया समाचार पत्र में आज छपी यह  खबर  कुछ लोगों के लिए आश्चर्य की बात हो सकती है तो कई इसे सरसरी तौर  पर देखकर आगे बढ़ जायेंगे मगर, बस्तर के लिए यह नई बात नहीं है वहां तो सालों  से यही होता आ रहा है अब तो स्थिति यह है कि कुछ सालों बाद आप हल्बी को यह कहते सुनें कि ''हम हल्बी बतियाँऊँसे''  कभी लगता है यह मारवाड़  है क्या ? तो कभी कोई अन्य प्रान्त . यह अच्छी बात है कि व्यापर के सिलसिले में या शासकीय सेवा के चलते स्थान बदलना ही पड़ता है किन्तु सच तो यह है कि जल ,जंगल ,जमीन पर केवल छत्तीसगढ़ के बाहर के लोगों का शासन है, कब्ज़ा है. व्यापारी  पढ़े लिखे हैं अफसरों से सांठगांठ के चलते ये अपना सारा काम आसानी से करा लेते हैं (सभी नंबरों वाले काम ) वहीँ स्थानीय लम्बी लाइन में धक्का खाने को मजबूर घंटों बैठे रहते हैं . जितने बड़े भवन मिलेंगे  इनके और इनमे काम करेंगे हमारे स्थानीय  बंधू-बांधव .   चाहे लालू के लाल हों या नितीश के नैतिक  सब एक ही थैले के चट्टे -बट्टे हैं  अनर्गल प्रलाप ही   कर सकते हैं ये .     वैसे भी छत्तीसगढ़ चारागाह बन चुका है   अब  छत्तीसगढ़ ही अपराधियों  की शरणस्थली  है . आज से चालीस साल पहले ही हमने कोरंडम की तस्करी करते सुना था  सोचिये चालीस साल का समय कम नहीं होता तीस साल तो कांग्रेस का ही शासन था मुझे तो ऐसा लगता है कि छत्तीसगढ़िया (बस्तरिया) सिर्फ शोषित होने के लिए पैदा हुआ है 



ये हैं दिल्ली की नई मुख्य मंत्री

ये हैं दिल्ली की नई मुख्य मंत्री--- क्यों सही कहा न? बिलकुल मुख्यमंत्री ही लग रही हैं --यह हम महिलाओं के लिए गर्व की बात होगी मैं जल्दबाज़ी में नहीं कह रही हूँ बल्कि यह हकीक़त है जब दिल्ली की सरकार चली नहीं उसी दिन से कह दिया था और शायद मैंने कहीं लिखा भी है इस बात को --

Tuesday, January 13, 2015

गीत-मया के सपना -छत्तीसगढ़ी गीत

छत्तीसगढ़ी गीत  

मया के सपना 
मया के अंगना मा आँखी मा सपना हे 
चार दिन के जिनगी असीस के झुलना हे 

1---- धीरज के चंदा हर जीव ला जुडावत हे 
अमावस के  अंधियारी मा नवा बिहनिया हे 
सुरुज के भरम मा जिनगी के गीत हे 
चार दिन के जिनगी असीस के झुलना हे 

2---झिन तयं पोटा रबे चिंता  के गठरी  
रद्दा भुलाए सुख कभू तो लहूँटही 
मन तोर डोलय  जईसे पीपरा  के पान हे 
चार दिन के जिनगी असीस के झुलना हे 

3---आसा के डोर ला झिन तयं बुचकाबे
मया के फुंदराला कस के गठियाबे
दुनिया हे सतरंगी बादर हे घाम हे
चार दिन के जिनगी असीस के झुलना हे