Wednesday, February 4, 2015

छत्तीसगढ़ी कविता --बिखहर

''बिखहर'' 
बिरबिट  करिया बिखहर
एक दिन धोखा ले
बस्ती माँ खुसरगे
वहू मेचका के पाछू -पाछू
ओला लिलेबर
 कब बस्ती माँ हबरगे
वो हा गम नई पाईस
फेर मनखे ओला देख डारिस
अउ छिन भर मा जुटगे भीड़
देख के डर्रागे बिखहर
खुसरगे पथरा के तीर
थोकन जघा  पाके
हेरो-हेरो ,
मारो-मारो के अवाज
मनखे तो मनखेच्च आय
हेर के ददे  दनादन ---
मरत बिखहर सोंचत हे
मयं तो एक ठी बिखहर
इहाँ तो कतको बिखहर
इंखर बर कोन ?

Monday, February 2, 2015

बस्तर पर कविता --''थानागुड़ी में ''

बस्तर पर कविता
''थानागुड़ी में'' 
चहल-पहल है 
आज  
थानागुड़ी में   
साहब जी आ रहे हैं  
रात  यहीं विश्राम करेंगे 
नए -नए हैं 
बादले पर आये हैं 
वे !
सुनते थे 
यहाँ आने से पहले 
कि बस्तर के लोग ,
गाँव, 
जंगल, 
आदिवासी, 
ऐसे? 
वैसे? 
और अब आना हुआ है 
तो ऐसा सुनहरा मौका 
क्यों चूका जाय 
साहब 
भीतर ही भीतर बहुत खुश हैं  
मातहतों के चेहरे 
घबराहट में  
आखिर साहब तो साहब हैं 
जल्दी से पीने का 
और 
साथ में मुर्गे का भी करना है 
इंतजाम 
क्या करें 
अचानक साहब का दौरा जो तय हो गया 
अब तो रात में घोटुल से 
चेलिक-मोटियारिन आयेंगे 
रीलो गाकर 
नाचकर 
साहब को प्रसन्न करेंगे  
और साहब 
अपने ग्रामीण क्षेत्रों के दौरे का समय 
सानंद बिताकर 
वापस लौट जायेंगे  
शहर मुख्यालय की ओर  
आने के लिए 
पुनः पुनः |( ''मेरा अपना बस्तर '' काव्य संग्रह से )

शकुंतला तरार