Thursday, June 26, 2014

बुजुर्गों की तरह ये पेड़


सांध्य दैनिक छत्तीसगढ़ अख़बार के द्वारा प्रकाशित साप्ताहिक इतवारी अखबार में 22 जून के अंक मेरी ये रचना छपी है ---जिसका शीर्षक है बुजुर्गों की तरह ये पेड़ --शकुंतला तरार 



Wednesday, June 25, 2014

हल्बी बोली का एक पाठ --3-- हाग

आज हल्बी बोली का एक पाठ --3-- हाग
हुन हाग दयेसे - हुन हाग दयेदे--हुन मन हाग देसोत 
वह बुला रहा है- वह बुलाएगा --वे बुला रहे हैं  
हाग देना = बुलाना 

हल्बी बोली का पाठ--2--"गोंदा"

  • आज हल्बी बोली का एक पाठ --2--"गोंदा" हल्बी का एक शब्द -"गोंदा"
    ''गोंदा ,(गोंदी) '' इस शब्द को छत्तीसगढ़ी में गेंदे के फूल से लिया जाता है जैसे हम कहेंगे गोंदा फूल , चंदैनी गोंदा ----मगर हल्बी बोली में गोंदा का अर्थ तुकडे से लिया जाता है जैसे --- दरपन मेरे हाथ से गिरकर गोंदा-गोंदा (गोंदी-गोंदी) हो गया ----साथ ही गेंदे के फूलके परिप्रेक्ष्य में भी इस शब्द को लिया जाता है किन्तु गेंदे के फूल के साथ गोंदा फूल यानि फूल शब्द का इस्तेमाल अक्सर करते हैं|

हल्बी बोली का पाठ--1--''बायले''


  • हल्बी बोली का पाठ--1-- ''बायले''

  • क्या आपको पता है बस्तर में स्त्री को क्या कहा जाता है जैसे 'नारी' 'स्त्री' 'महिला' वैसे ही वहां स्त्री को ''बायले'' कहा जाता है |-

Sunday, June 22, 2014

''सूरज'' कविता

''सूरज''
सूरज
प्रकृति को अपने अंक में समेट कर 
भोर मुहाने आ खड़ा होता है 
हर दिन 
उसकी किरनें उतरने लगती हैं जब 
आँखों में 
हौले-हौले पंछी अपने पर फड़फड़ाते हैं 
हल-बैल ले किसान खेतों की और जाता है 
दूर कहीं से मंदिर से घंटियों की 
आती आवाजें
तब कोई शीतल हवा का झोंका
चुपके चुपके आकर मेरे कानों में कहता है
एरी सखी!
तू क्यूँ अब तक गुमसुम सी पड़ी है
उठ!
आजा
आज का नया दिन
तेरे स्वागत में पलक पावड़े बिछाये
तेरा इंतज़ार कर रहा है ----शकुंतला तरार