Friday, January 24, 2014

बस्तर -----गीत 2 ^^जंगली सौंदर्य**

बस्तर -----गीत 2 
^^जंगली सौंदर्य** 
बैलाडिला लौह अयस्क प्रोजेक्ट 
ऊँचा नाम ऊँचा काम 
नए नए लोग 
अचानक 
 बस्तर में आना 
उफ़! 
ये जंगली सौंदर्य 
परिणति 
अनब्याही माँ  
 नाबालिग माँ ,
घरेलु काम के एवज में लुटी हुई अस्मत
 दैहिक शोषण की  शिकार बालाएँ 
चंद टुकड़े रुपयों  के
 लुटी हुई अस्मत के बदले ठगी हुई मानसिकता 
पुनः परिणति 
दैहिक शोषकों से जबरिया ब्याह 
अधिकारियों का स्थानांतरण,  
तलाक, 
अथवा पलायन
 क्या बचा 
गोद में बच्चे 
तिरस्कार 
उपेक्षा 
परदेशियों द्वारा ठगी का शिकार
 और
 आज भी जारी है बदस्तूर 
अधिकारियों के, 
व्यापारियों के, 
कुत्सित भावनाओं की ,
कुत्सित निगाहों की ,
घृणित  मानसिकता की 
 फिर भी 
वही भोलापन, 
वही अल्हड़पन 
और  वही निर्द्वन्द्व,
 निश्छल हँसी !
                                          शकुंतला तरार 

Thursday, January 23, 2014

बस्तर---- गीत न-1 ''अभिव्यक्ति ''

बस्तर----  गीत न-1   
''अभिव्यक्ति ''
पहाड़ों के बीच से
 निकलती है  इक नदी
 निश्छल, 
निर्मल,
 शीतल जलधारा लिए 
अपनी मौज में वह  
बहती जाती है 
तट पर आये लोगों को  
अपनी शीतलता से ठंडक पहुँचाती 
ठीक  उसी तरह वह भी 
जीवन की  कुटिलता से परे 
 उन्मुक्त , 
निर्द्वंद्व,
 निष्कपट भाव से
 निकलती है जब  घर से
 तो न जाने कितने लोगों की  आँखों को 
पहुंचाती है ठंडक 
कुछ की आँखों में 
 उसकी खूबसूरती की  प्रशंसा 
कुछ कि या ज़यादा की आँखें 
वासनामयी 
परन्तु 
उसे इन सबसे 
कोई सरोकार नहीं 
 वह चलती जाती 
राह अपनी 
वह जा रही है 
देखो ! देखो तो !
अरे भई कहाँ ? 
महुआ बीनने 
नशा--
यहाँ तीन गुना हो गया है 
मदमाता यौवन,
 महुआ
 और 
 वसंत
 तीनों ने जीवन को
 नई  अभिव्यक्ति दी है 
मानो --------।