Thursday, January 17, 2019

सम्पादकीय-अक्टूबर-दिसंबर 2018 आखिर थम गया सुरों के सफ़र का जादू:- लक्ष्मण मस्तुरिया


 सम्पादकीय-अक्टूबर-दिसंबर 2018 आखिर थम गया सुरों के सफ़र का जादू:- लक्ष्मण मस्तुरिया


खिलना भूलकर , विश्व-बोध ,भगत की सीख, छायावाद और मुकुटधर पाण्डेय ,गोधुलि, धरती सबके महतारी, वृक्ष में तब्दील हो गई है औरत आदि अनेक पुस्तकों के लेखक, समीक्षक, छायावाद के प्रवर्तक मुकुटधर पाण्डेय की छत्रछाया में साहित्य की ऊंचाइयां प्राप्त करने वाले वरिष्ठ शिक्षाविद डॉक्टर बल्देव साव रायगढ़ के निधन से साहित्य जगत अभी ऊबर भी नहीं पाया था कि दूसरी बुरी खबर आई कि लक्षमण मस्तुरिया नहीं रहे| स्तब्ध रह गई मैं जैसे थम गया हो सब कुछ | अख़बारों में, फेसबुक-व्हाट्सएप्प सब में उस दिन वे ही थे और वे, अनंत में विलीन | आँखें नम थी उन सबकी जो उन्हें जानता था या उनके गीतों से परिचित था|
      ‘पता ले जा रे पता दे जा रे गाड़ी वाला, बखरी के तुमानार बरोबर मन झुमरे, वा रे मोर पंड़की मैना’ जैसे अनेक गीतों के साथ ही वह अमर गीत जिस गीत ने लक्ष्मण मस्तुरिया को जन-जन के कंठ में बसाया वह अमर गीत था ‘मोर संग चलव रे’ अर्थात गाँव गरीब का वह गायक, असमर्थ-लोगों का वह नायक सबको अपने साथ लेकर चलने की बात करता है|
                        राजिम कुम्भ की परिकल्पना भले ही राज्य बनने के बाद की हो किन्तु उनका यह गीत दशकों से लोगों के दिलों पर राज कर रहा है|
माता पिता ने कभी सोचा भी न रहा होगा कि दिन उनका यह लाड़ला छत्तीसगढ़ के जन-जन के कंठों में, दिलों में ऐसे बसेगा कि आने वालीं कई पीढ़ियाँ उनके गीतों को सुनकर प्रेरणा लेंगी |
            मात्र २२ वर्ष की उम्र में  बघेरा के दाऊ रामचंद्र देशमुख की संस्था ‘चंदैनी गोंदा’ के वे मुख्य गायक ही नहीं बने अपितु उन्होंने सैकड़ों गीत भी लिखे जिन्हें उस वक़्त संगीतबद्ध किया आदरणीय खुमान साव जी ने | जब तक दाऊ रामचंद्र देशमुख थे ‘चंदैनी गोंदा’ ने प्रसिद्धि के आसमान को छुआ इसमें कलाकारों के साथ ही   लक्ष्मण मस्तुरिया लिखित गीत और खुमान साव जी का संगीत दोनों बराबर के सहभागी रहे |
छत्तीसगढ़ की घुमंतू जनजाति देवारों को लेकर देवार-डेरा की स्थापना जब दाऊ रामचंद्र देशमुख ने की उस वक़्त लक्ष्मण मतुरिया ने देवारों के गीतों का पुनर्लेखन कर उसे परिष्कृत स्वरूप प्रदान किया जिसे छत्तीसगढ़ के लोग आज भी चाव से सुनते हैं, गुनते हैं ,गाते हैं, गुनगुनाते हैं |
उनके आवाज़ की स्वरलहरी जब गाँव-गली, खेत- खलिहान में गूंजती है तो हिरनी के पाँव भी थम जाते हैं| गाँव का किसान हो या मजदूर या शहर का सुधि श्रोता उनके गीतों के माधुर्य में खो जाता है और  .......... वे छत्तीसगढ़ माटी के दुलारे जन-जन के प्यारे कवि थे गीतकार थे | जब वे कवि सम्मलेन के मंचों पर होते और उन्हें सुनाने का अवसर मिलता हमेशा दर्शक दीर्घा श्रोताओं की ओर से वन्स मोर वंस मोर की आवाज़ से वातावरण गुंजायमान हो उठता था, एक बार में लोगों का जी ही नहीं भरता था |
वे इतने सरल थे कि कभी सम्मान के पीछे नहीं  गए | अनेक स्थानीय सम्मान से उन्हें सम्मानित किया गया मगर छत्तीसगढ़ का दुर्भाग्य था कि ऐसे माटी पुत्र जो पद्मश्री से विभूषित हो सकते थे उन्हें राज्य शासन का पंडित सुन्दरलाल शर्मा सम्मान जो साहित्य के लिए प्रदान किया जाता है वह सम्मान तक नहीं मिला जबकि शासन स्वयं उन्हें राज्य का साहित्य सम्मान से सम्मानित करके   पद्मश्री सम्मान दिलवाता किन्तु वे हमेशा राजनीति के शिकार होते चले गए |   
मेरा सौभाग्य था कि मुझे कई कवि सम्मेलनों के मंचों पर उनके साथ काव्य-पाठ करने का सुअवसर प्राप्त हुआ |जब वे राजकुमार कॉलेज में प्राध्यापक थे तब कभी-कभी कालेज परिसर स्थित उनके निवास पर मैं जाती थी फिर उनके रिटायरमेंट के पश्चात उनके भाई मोहन गोस्वामी के ऑफिस में या कभी किसी साहित्यिक आयोजनों में मुलाकात हो जाती|
जब उन्होंने भी लोकसुर नामक  पत्रिका का प्रकाशन शुरू किया, बहुत खिन्न रहते अक्सर मुझसे कहते ‘तयं कईसे अतेक साल ले पत्रिका के प्रकाशन ला करत हस, मैं तो अतने मा थर्रागे हंव| मैं कहती आपकी पत्रिका कलरफुल है ,कागज़ भी बहुत महंगा वाला है इसलिए खर्च भी बहुत आता है| और एक दिन उन्होंने मुझे फोन करके जन-संपर्क में मिलने को कहा और अपनी आठ पत्रिकाओं का एक सेट मुझे थमा दिया और कहा अब मेरे बस का नहीं है पत्रिका का प्रकाशन करना | ये मेरी धरोहर है ,इसे तुम संभाल कर रखना|
यदि हम छत्तीसगढ़ी फिल्मों की बात करें तो दशकों पहले घर-द्वार और कही देबे सन्देश के नाम से दो छत्तीसगढ़ी फिल्म आई थी, उसके बाद   राज्य बनने के आस-पास एक छत्तीसगढ़ी फिल्म आई ‘मोर छईयाँ भुईयां’ जो सतीश जैन के निर्देशन में बनी थी उसमें लक्षमण मस्तुरिया के कर्णप्रिय गीतों ने फिल्म- की सफलता में अपना शत प्रतिशत योगदान दिया था| आदरणीय स्वराज करूण ने आप पर एक बहुत सुन्दर लेख लिखा था जिसे आप इसी पत्रिका में पढ़ पाएंगे |
बहरहाल आपकी रचनाएँ कालजयी हैं आपके गीतों ने आपको अमर बना दिया | ऐसे महान व्यक्तित्व की उपेक्षा छत्तीसगढ़ का दुर्भाग्य है | वे आज हमारे बीच नहीं हैं किन्तु वे हम सबके दिलों में सदा अमर थे, अमर हैं और अमर रहेंगे | इस महान विभूति को मेरी और नारी का संबल परिवार की और से भाव-भीनी श्रद्धांजलि |

Wednesday, January 16, 2019

पुस्तक लोकार्पण- "राँडी माय लेका पोरटा"

पुस्तक लोकार्पण
साहित्य अकादमी दिल्ली से प्रकाशित जनजातीय साहित्य के संरक्षण, संवर्धन के तहत हल्बी गीति कथा "राँडी माय लेका पोरटा" जिसका संकलन करके हिंदी और छत्तीसगढ़ी में अनुवाद किया , का लोकार्पण विगत दिनों ऐसे हाथों सम्पन्न करवाया जिन्होंने मुझे घर सम्हालने से लेकर टाइप सेटिंग तक में मदद की है और आज भी करते हैं और ये हैं मेरे बच्चे- संदीप और श्वेता 

मित्रो- जनजातीय साहित्य पर केंद्रित यह पुस्तक आपको   साहित्य अकादमी दिल्ली के पते  से प्राप्त हो जाएगी।  
पुस्तक के साथ मूल गायक की आवाज़ में डीवीडी भी उपलब्ध है जिसे आप पढ़ते हुए सुनने का आनंद ले सकते हैं। इसकी कीमत मात्र 210 रु है।