Tuesday, August 26, 2014

माँ --गीत

गीत 


बहुत दिनों के बाद एक रचना माँ पर ----
^^माँ**
दुनिया में जितनी उपमाएँ
माँ के आगे सब फीकी हैं
क्या होती कैसे होती है
माँ तो बस माँ ही होती है ॥माँ है तो प्रकृति पलती है
माँ जीवन है माँ आँगन है
माँ बादल है माँ सावन है
दर्पण बन गढ़ती प्रतिमाएँ
माँ जननी बस माँ होती है॥
चरण धूलि जहाँ माँ के पड़ते
फिर शुभमय शब्दों में ढलकर
वेद पुराण अध्याय हैं गढ़ते
ग्रंथों में उसकी रचनाएँ
मातृभूमि वही माँ होती है॥
माँ प्रेरणा जीवन का हर्ष है
हर मुश्किल में साथ निभाती
हर विपदा को धूल चटाती
प्रगति पथ की वह कविताएँ
स्नेह का सोता माँ होती है॥
माँ है तो धरती चलती है
सुप्त निर्झर बहने लगता
माँ संघर्ष है माँ उत्कर्ष है ----शकुंतला तरार