Wednesday, April 10, 2019

फेसबुक में इन दिनों ----जनवरी-मार्च 2019-सम्पादकीय-नारी का संबल


सम्पादकीय,
फेसबुक में इन दिनों ----
मित्रो इन दिनों फेसबुक पर भारत और भारत के बीच युद्ध छिड़ा हुआ है अर्थात एक पाकिस्तान हमारे देश के अन्दर भी जन्म ले चुका है | पाकिस्तान को लेकर कुछ साहित्यकार इतने संजीदा हैं कि अब उनके पास वापस करने के लिए सम्मान भी नहीं बचा है | दरअसल ये वामपंथी साहित्यकार सम्मान पाकर भी गुमनामी भरा जीवन जी रहे थे | उनकी पूछ परख कम हो गई थी | वे भी बेचारे न्यूज़ बनना चाहते थे किन्तु, लोग उन्हें भाव ही नहीं दे रहे थे और इस बीच उन्हें मौका मिल गया और यह अवसर था देश के दुश्मनों द्वारा सैनिकों पर हुआ आतंकी हमला जिसमें 46 सैनिक शहीद हो गए | जवाब में भारत ने भी हवाई हमला कर जैश के आतंकी केम्प को ध्वस्त कर दिया | यहाँ आग में घी का काम किया हवाई हमले ने,   फिर क्या था ताबड़तोड़ हमला अपने-अपने पोस्ट के द्वारा | हद तो तब होती है जब ये देश की रक्षा में प्राण न्यौछावर करने वाले सैनिकों पर संदेह करते हैं | इनकी नफ़रत इस कदर है कि लगता है एक एटमबम इनके दिमाग में भी भरा हुआ है जिसे कलम के माध्यम से ये पन्नों पर उतार कर देश के खिलाफ ज़हर उगलेंगे | वे पुलवामा हमले का जश्न मनाने वाले लोगों के रहनुमा बनते हैं | सुबूत माँगते हैं | अरे! अपने घर के बच्चों को भेज देते सीमा पर, अपने घर के अंदर बैठकर गाल बजाते हैं और खुन्नस फेसबुक पर लिखकर उतारते हैं | दरअसल ये अपने ही देश के साथ विश्वासघात कर रहे हैं | आतंकियों के ये रहनुमा आतंकियों से भी ज्यादा खतरनाक हैं क्योंकि ऐसे ही लोग भीतरघात करते हैं | सवाल किसी राजनितिक दल की नहीं |              अभिनंदन की वापसी किसने नहीं चाही थी किन्तु अभिनंदन को लेकर जैसी दीवानगी भरी प्रतिक्रिया देखने को मिली  जुनूनी जनता के द्वारा उसके आने की ख़ुशी में स्काड्रन लीडर सिद्धार्थ वशिष्ठ और बाकी जवानों की शहादत को भुला दिया गया | इधर अभिनन्दन की एक झलक पाने के लिए लोग बेताब हो रहे थे उधर पाकिस्तानी गोलीबारी से जवान मोर्चा संभाले हुए शहीद होते जा रहे थे | ऐसा नहीं की देश का नागरिक उसकी सही सलामत वापसी नहीं चाहता था किन्तु टी वी चैनलों ने अति मचा रखी थी लोग सुबह से वाघा बार्डर पर आँखें गडाए बैठे थे | यहाँ इमरान को इन लोगों ने हीरो बना दिया | जबकि पाकिस्तानियों की फितरत ही नहीं कि वे इतनी सरलता से झुक जाए, इसके पीछे भारत द्वारा बनाया गया अंतर्राष्ट्रीय दबाव का परिणाम था | हमें अपने भारत के भीतर के ही  फिरकापरस्तों और पाक समर्थित मिडिया कर्मियों को वामपंथियों को जो पत्थरबाजों  के रहनुमा बनते हैं |     
छत्तीसगढ़ में नरवा, गरुवा, घुरवा, बारी और माननीय मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ---
 छत्तीसगढ़ के तीसरे और नव नियुक्त  मुख्यमंत्री भूपेश बघेल जी ने आने वाले दिनों में जरूरतमंद ग्रामीणों को गांव में ही रोजगार मिल सके, इसके लिए गांवों में लगातार रोजगार मूलक कार्य की व्यवस्था  के लिए एक योजना का क्रियान्वयन किया है जिसका एक बड़ा ही खुबसूरत सा स्लोगन दिया है उन्होंने--- छत्तीसगढ़ के चार चिन्हारी, नरवा, गरुवा, घुरवा, बारी || इस योजना में यह  प्रावधान है कि किसान गांव के गौठान में दिन भर अपनी गाय और दूसरे मवेशी बांधेंगे. जिससे फसलों के चरने की परंपरा खत्म हो. गौठान के गोबर से बायोगैस, गौमुत्र और वर्मी कंपोस्ट तैयार किया जाएगा. जबकि चारागाहों को अगले चरण में विकसित किया जाएगा. उन्होंने नरवा, गरुवा, घुरवा, बारी योजना में कराए जाने वाले कार्यों का तत्परता से प्रस्ताव तैयार कर मंजूरी प्राप्त करने के निर्देश दिए। अधिकारियों को प्रत्येक गांव में रोजगार मूलक छोटे-छोटे कार्य जैसे तालाब निर्माण एवं गहरीकरण, धरसा रोड निर्माण (गाड़ा रवान), डबरी, कुआं, बोल्डर, चेकडेम, नाला बंधान, सीपीटी निर्माण, वृक्षारोपण आदि पर ध्यान केंद्रित किया है और चरणबद्ध तरीके से सरकार के इस महात्वाकांक्षी योजना को प्रारंभ कर ग्रामीणों को, किसानों को लाभान्वित करने का बीड़ा उठाया है |
  अब देखना यह है कि माननीय मुख्यमंत्री महिलाओं को आगे लाने की दिशा में कौन सा कदम उठाते हैं | महिलाओं के रोजगार, उनकी सुरक्षा, उनकी शिक्षा, उनका सम्मान, उन्हें उचित अवसर प्रदान करने के लिए कौन सी दशा और दिशा तय करते हैं, कौन सा स्लोगन बनवाते हैं यह तो आने वाला समय ही बताएगा | अभी तो शुरुवात है आने वाले पांच सालों में उनसे कुछ उम्मीद की जा सकती है क्योंकि राज्य बनने के बाद जिस सफलता की आशा हमने की थी वह अठारह सालों में भी सही दिशा नहीं तय कर पाई,  फलीभूत नहीं हो पाई | केवल कुछेक अधिकारियों की बीवियां, बच्चे या चमचागिरी करने वाले ही आगे बढ़ पाए और जिसने संघर्ष ही किया केवल इन अठारह सालों में वह आज भी उसी जद्दोजहद में है, संघर्षरत है जिसमें मैं खुद को आगे रखती हूँ, प्रथम श्रेणी में रखती हूँ क्योकि अभी भी, आज भी वह संघर्ष जारी है क्योंकि मुझे लगता है, मैं छत्तीसगढ़िया हूँ और छत्तीसगढ़ियों को बड़ी आसानी से झुनझुना पकडाया जा सकता है | यदि आप भी मेरे संघर्ष के साक्षी न बने तो कल के दिन अठारह वर्षों से निरंतर निकलने वाली यह पत्रिका भी निकलती है की जगह निकलती थी हो जाएगी | मुझे लगता है एक छत्तीसगढ़िया दूसरे छत्तीसगढ़िया की पीड़ा को अवश्य महसूस करेंगे और इस महिला दिवस पखवाड़े के वक़्त उनसे उम्मीद की जा सकती है कि महिलाओं की उन्नति में मार्गदर्शक बनकर जो काम आज तक किसी भी सरकार ने और किसी भी राज्य ने नहीं किया वह यह छत्तीसगढ़िया बेटा जरुर कर दिखाएगे ऐसी आशा तो की ही जा सकती है |
इस महिला दिवस पर ---
अबूझमाड़,
अबूझमाड़ के जंगलों में
निवास करने वाली मेरी माँ,
मेरी बहन,
मेरी बेटी
नहीं जानती कि
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस
इस नाम से
कोई दिवस भी होता है
जहां एक दिन
इकट्ठी होती हैं महिलाएं
करती हैं बातें
महिला अधिकारों की   
सुदूर की स्त्रियाँ कितना जानेंगी   अपने अधिकारों को
उन्हें तो इस बात से मतलब है कि
उनके बेटे, उनकी बेटी
नक्सलियों के हत्थे न चढ़ जाएं
कोई परदेसी बहकाकर
उनकी बेटियों को दूषित न करे
इनकी जरुरत
वही मंडिया
वही नॉन मिरी
वही कुछ कपडे
बेटियों के साज श्रृंगार के लिए
कुछ गिलट, चाँदी के आभूषण
कुछ मनिहारी
एक झोंपड़ी
हांडी, भंडवा, बेला, चाटू, अमली
महुआ, टोरा, आम तेंदू
और चाहिए सल्फी
कुछ जंगली कंद-मूल
सामजिक समस्या इनकी अपनी
तय करते हैं आपस में
मिल बैठकर
कोर्ट में क्यूँ जाना
जब समस्या अपनी है
और
वहीँ इसका दूसरा पक्ष भी है
शहर
शहर- का जहां बड़े-बड़े आयोजन
बड़े घरों की महिलाओं द्वारा  संचालित   
पार्लर से लिपि-पुती कुछ महिलाऐं आती हैं
होती हैं शोभायमान मंच पर
और महिलाओं को सम्मानित करके
महिला हित की बातें
फिर साल भर के लिए
अपने एनजीओ का फायदा
लोग समझते हैं कि ये अशिक्षित
हमें क्या सिखाएंगे
सामाजिक सहकार की बातें
समाज को दिशा देने का कार्य
भला इनसे ज्यादा कौन समझेगा
क्या आप समझते हैं ?
क्या आप जानते हैं ?
शकुंतला तरार