Sunday, June 2, 2019

“बस्तर की नारी”

बस्तर पर कविता                     
                           “बस्तर की नारी”

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस
 8 मार्च
 पार्लर से निकली
  लिपी-पुती कुछ महिलाएं
 बड़े-बड़े आयोजन करतीं
बड़े आयोजनों का हिस्सा बनतीं
 मोमेंटो,
कागज का सम्मान पत्र
उपलब्धि के कुछ लाईन 
समाज सेवा के खोखले उदाहरण - - -
वहीँ
बस्तर के बीहड़ों में
कभी नक्सल के नाम पर 
जूझती
मारी जाती 
आदिम नारी
कभी नक्सलियों के हाथों
मारी जाती
जंगल की वह नारी
भय के साए में जी रही
दिन–रात
किस आयोजन का हिस्सा बनेंगीं
कौन से सम्मान पत्र पर
इनका नाम लिखा जाएगा  
अब के
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर
जवाब चाहती है
वह  
बस्तर की नारी ||

संस्मरण—5---- कोंडागांव बस्तर ---- बात उन दिनों की ---------जनपद प्राथमिक शाला कोंडागांव


 संस्मरण—5----

 कोंडागांव बस्तर  ---- बात उन दिनों की ---------जनपद प्राथमिक शाला कोंडागांव

कक्षा पाँचवी में --–बिस्सू गुरुजी यानि  विश्वेश्वर रवानी यह नाम था हमारे पांचवी के गुरूजी का | उनके पिताजी हाई स्कूल के टीचर थे और मेरे मामाजी के मित्र थे | इस नाते कभी–कभी हम लोग भी उनके यहाँ माँ और मामाजी के परिवार के साथ बैठने जाते थे   घरोबा हुआ करता था |
हाँ तो बात विश्वेश्वर रवानी जी की | वे स्कूल का सांस्कृतिक विभाग भी सम्हालते थे यह गुण शायद उनमें जन्मजात रहा होगा क्योंकि आपके पिताजी शासकीय हायर सेकेंडरी स्कूल के सांस्कृतिक कार्यक्रम में हारमोनियम बजाते थे | उस जमाने में हारमोनियम तबला के साथ लड़का लड़की गाना गाते थे और नर्तक दल हो या एकल हो नृत्य करते थे अर्थात गायन,वादन और नृत्य सब के लिए सामूहिक प्रेक्टिस होता था आज तो सुविधाएँ ज्यादा है |
उन दिनों साल में सिर्फ एक बार गणेश पूजा के अवसर पर दस दिनों तक सांस्कृतिक कार्यक्रम हुआ करता था जिस में सभी स्कूलों की भागीदारी अवश्य होती थी | हर दिन किसी न किसी स्कूल का कार्यक्रम होता इसके अलावा अन्य बीच–बीच में कोई नाटक, नृत्य नाटिका या संगीत रायपुर से संगीत समिति का फ़िल्मी संगीत कार्यक्रम कव्वाली आदि बहुत ही अच्छे-अच्छे कार्यक्रम होते दस दिनों तक |
उसी दौरान क्लास में एक दिन बिस्सू गुरुजी सभी बच्चों की प्रतिभा परखने के लिए कुछ न कुछ प्रस्तुत करने को कह रहे थे जब मेरी बारी आई तो मैंने एक गीत गाया ----तितली उड़ी उड़ जो चली, फूल ने कहा आजा मेरे पास तितली कही मैं चली आकाश | फिल्म सूरज का वह गाना जो रेडिओ पर बजा करता था मुझे बहुत पसंद था सभी ने बहुत पसंद किया हमारे गुरूजी को तो इतना भाया कि उन्होंने कहा इसे तुम स्टेज में गाना गणेश पूजा के अवसर में |
अंधे को क्या चाहिए दो आँखें बस फिर क्या था उस दिन से मैं अपने आप को बहुत बड़ी गायिका समझने लगी थी | प्रोग्राम की तैयारी के लिए प्रेक्टिस करती रहती की कहीं मंच  में जाकर गाना भूल न जाऊं | हमारे यहाँ महिलाओं का सबसे बड़ा त्यौहार आता है तीजा मुझे सिर्फ ये ज्ञात था कि तीजा आएगा तभी दूसरे दिन से गणेश जी बिठाएँगे और स्कूलों का प्रोग्राम होगा |
पूरे कोंडागांव के लिए सिर्फ एक ही जगह तय था राम मंदिर | मंदिर के दाईं ओर एक तालाब था मंदिर के सामने सड़क और सीधे सामने साप्ताहिक बाजार | मंदिर के बाईं ओर स्थाई रूप से सीमेंट का स्टेज बना था | मंदिर के सामने रायपुर से जगदलपुर राजमार्ग,  जो आज भी है, वहीँ सड़क के किनारे से पंडाल लग जाता तब यदा कदा ही गाड़ियां चलती थीं जिसका समय भी तय था अतः कार्यक्रमों में बहुत भीड़ होने के बावजूद परेशानी नहीं होती थी |
 गणेश जी विराजे और कार्यक्रमों का दौर शुरू हुआ मैं अपनी माँ को लेकर गई यह कहकर कि आज मेरा गाना सुनना | रात हुई जैसे ही प्रोग्राम शुरू हुआ मैं मंच के पीछे गई तब प्रोग्राम प्रभारी टी एस ठाकुर सर से मिली और उनसे अपने गाने की इच्छा जाहिर की उन्होंने कहा कल आना | मैं वापस आकर माँ को बताई फिर हम लौट गए इसी तरह मैं रोज जाती रोज मंच के पीछे जाकर सर से गाने की फरियाद करती वे रोज मुझे कहते कल आना नवें दिन भी यही कहा मैं दसवें दिन फिर माँ को लेकर गई आज तो आखरी दिन है जरुर मुझे अवसर देंगे| दसवें दिन कहा बुलाता हूँ, मैं माँ के पास आकर दरी में बैठ गई कार्यक्रम होते रहे और मैं इंतजार करते- करते थककर माँ की गोद में सो गई | अचानक माँ की आवाज़ से मेरी नींद खुली माँ मेरा नाम लेकर आवाज दे रही थी| कह रही थी नोनी उठ जा कार्यक्रम ख़तम हो गया चल घर चलते हैं | सच कहती हूँ उस वक्त मुझे इतना रोना आया इतना रोना आया किन्तु लोग मेरी हंसी ना उड़ायें ये सोचकर चुप रह गई | मैं बहुत दुखी हो गई थी यह माँ ने भी देखा तब माँ के दिल पर मेरी भावनाओं का क्या असर हुआ यह  कभी पूछा नहीं न ही उस उम्र में यह सब बातें मालूम थीं मगर मेरे दिल में एक टीस जरुर रही कि सर ने मुझे गाने का अवसर नहीं दिया | हो सकता है कि कार्यक्रम के बीच में अवसर न देना उनकी मज़बूरी रही होगी मगर आज तक दिल इस बात की गवाही नहीं देता | और इस तरह मैं प्राइमरी स्कूल कब पास कर गई पता ही नहीं चला |
हमारे समय में छुट्टियों का बड़ा आनंद उठाते थे | मार्च में परीक्षाएं समाप्त सीधे – तीस अप्रैल को जाना होता था रिजल्ट लेने के लिए | लेकिन रिजल्ट लेने के दिन हम लोगों को अपनी किसी हस्त कला का प्रदर्शन करना होता था तो हम लोग मिटटी से आम, सीताफल, जाम (अमरुद), केला, पपीता, घर आदि बनाकर उसे रंगों से सजा कर स्कूल में जमा करते थे फिर रिजल्ट सुनाया जाता और हम लोग हँसते-हँसते ( जो फेल होता वो दुखी होता)  घर आ जाते |
शेष फिर -----

संस्मरण—4---- कोंडागांव बस्तर ---- बात उन दिनों की ---------जनपद प्राथमिक शाला कोंडागांव

संस्मरण—4----
कोंडागांव बस्तर ---- बात उन दिनों की ---------जनपद प्राथमिक शाला कोंडागांव
कक्षा चौथी में --– इस कक्षा का ज्यादा कुछ नहीं पर वाजपेयी गुरुजी थे हमारे | मिश्रा गुरुजी के पड़ोस में ही उनका भी आवास था और दोनों ही अच्छे मित्र थे | 
कक्षा चौथी का मुझे ज्यादा कुछ नया स्मरण नहीं हो रहा किन्तु इतना याद है कि कभी-कभी शायद शनिवार का ही दिन होता था हम सारे बच्चे लाईन लगाकर टीना वाला डिब्बा जिसे जो मिला पास के बंधा तालाब से पानी भरकर लाते और स्कूल के पौधों को सींचते सभी बच्चे लाईन से आते –जाते इसमें भी हमें बहुत आनंद आता हंसते खेलते कब और कितने डिब्बे भर लाए पानी पता ही नहीं तब गाड़ियाँ गिने-चुने, इक्का-दुक्का ही चलते सो एक्सीडेंट का डर ही नहीं था | वर्तमान समय में यदि शिक्षक ऐसा कार्य करवाए तो अभिभावक स्कूल प्रशासन से उसकी शिकायत कर देगा | वह शिक्षक निलंबित हो जाएगा पेपर में बड़े-बड़े अक्षरों में छप जाएगा, मगर हमारे वक्त में माता-पिता स्कूल प्रबंधन के काम में कभी हस्तक्षेप नहीं करते थे |
शेष फिर -----