Saturday, November 21, 2015
Thursday, October 15, 2015
कवि सम्मलेन --
रायपुर विधान सभा आवासीय परिसर में कवि सम्मलेन --
कल का दिनहमारे लिए बहुत अनमोल और बहुत ही अविस्मरनीय रहा |आदरणीय देवेन्द्र वर्मा जी के मुख्य आतिथ्य में विधान सभा आवासीय परिसर में दुर्गा उत्सव के दूसरे दिन उत्सव समिति द्वारा कवि सम्मलेन का आयोजन किया| कार्यक्रम की अध्यक्षता की श्री गंगराड़े जी ने कवियों में सर्वश्री चेतन भारती,सुशील भोले, भवानी शंकर बेगाना, राजेंद्र पांडे, राजेश चौहान, क्रांति दीक्षित और मैं शकुंतला तरार
कल का दिनहमारे लिए बहुत अनमोल और बहुत ही अविस्मरनीय रहा |आदरणीय देवेन्द्र वर्मा जी के मुख्य आतिथ्य में विधान सभा आवासीय परिसर में दुर्गा उत्सव के दूसरे दिन उत्सव समिति द्वारा कवि सम्मलेन का आयोजन किया| कार्यक्रम की अध्यक्षता की श्री गंगराड़े जी ने कवियों में सर्वश्री चेतन भारती,सुशील भोले, भवानी शंकर बेगाना, राजेंद्र पांडे, राजेश चौहान, क्रांति दीक्षित और मैं शकुंतला तरार
Thursday, October 8, 2015
महिलाओं का कार्य स्थल पर लैंगिक उत्पीडन समिति की बैठक
महिलाओं का कार्य स्थल पर लैंगिक उत्पीडन समिति की बैठक
महिलाओं का कार्य स्थल पर लैंगिक उत्पीडन (निवारण,प्रतिषेध और प्रतितोष) अधिनियम 2013 के अंतर्गत आतंरिक शिकायत निवारण समिति की बैठक राज्य शासन के जनसंपर्क संचालनालय में मंगलवार को आयोजित की गई | बैठक में अधिनियम के विभिन्न प्रावधानों पर चर्चा की गई बताया गया कि इस अधिनियम के अंतर्गत जनसंपर्क संचालनालय और राज्य के 27 जिलों में स्थित जिला जनसंपर्क कार्यालयों से कोई शिकायत प्राप्त नहीं हुई है बैठक में आंतरिक निवारण की अध्यक्ष संयुक्त संचालक हेशा पौराणिक, संयुक्त संचालक, जमुना सांडिया, उपाध्यक्ष पुष्प वर्मा, तौकीर जाहिद, सुनीता केशरवानी आमना,प्रतिभा केएवं विभागीय महिला कर्मचारियों के साथ ही ---अशासकीय सदस्य के रूप में मेरी मौजूदगी(शकुंतला तरार) उल्लेखनीय रही|
Monday, August 24, 2015
Wednesday, August 12, 2015
मैं मधु हो जाता हूँ-मुक्तक
अभी ताजी रचना आप सब के लिए ----------- 11-08-2015
फूल- फूल से रस ले लेकर मैं मधु हो जाता हूँहर पराग से पूछो कितना दर्द उन्हें दे जाता हूँ
किन्तु मानव लेता मुझसे मेरे परिश्रम का सब कुछ
करता वही वार जब मुझपर क्रोधित मैं हो जाता हूँ
शकुंतला तरार ---फोटो (मनेन्द्रगढ़ जिला कोरिया)
shakuntalatarar7@gmail.com
Sunday, August 2, 2015
मितान -(मातृभूमि के लिए किसान का आह्वान करता यह गीत)
(मातृभूमि के लिए किसान का
आह्वान करता यह गीत(
मितान
सुनव-सुनव ग मोर मितान
आवव आवव हो मोर मितान
देखाव देखाव गए मोर मितान
छत्तीसगढ़िया बनिहार किसान ||
·
ए माटी ए माटी
ए चोवा चंदन
मनखे करथे एला बंदन
जघा-जघा मा मंदिर देवाला
किसिम-किसिम के भाजी-पाला
मन ल मोहाये पुरईनपान
छत्तीसगढ़िया बनिहार किसान||
·
गुरतुर-गुरतुर भाखा-बोली
लागय जईसे मंदरस घोरी
रामगिरि ले दंतेवाड़ा अउ
रायगढ़ ले खैरागढ़ तक
ओरी-ओरी सब्बो हे ठान
छत्तीसगढ़िया बनिहार किसान||
Saturday, July 4, 2015
Saturday, June 27, 2015
Thursday, June 25, 2015
Tuesday, June 23, 2015
Sunday, June 14, 2015
नारी का संबल- जनवरी-मार्च -2015
नारी का संबल- जनवरी-मार्च -2015
त्रैमासिक पत्रिका ''नारी का संबल'' साहित्य की समस्त विधाओं से परिपूर्ण पत्रिका है जो विगत चौदह सालों से (जुलाई-सितंबर 2001) छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से निरंतर प्रकाशित हो रही है जो एक महिला संपादक द्वारा विभिन्न कठिनाइयों को पार करते हुए भी निरंतरता को बनाए हुए है । पत्रिका का यह अंक रायपुर साहित्य महोत्सव पर केन्द्रित अंक है आशा है आप सब के लिए यह नया अनुभव होगा और बहुत पसंद आएगी - शकुंतला तरार
Wednesday, June 10, 2015
Friday, May 29, 2015
Tuesday, May 19, 2015
Saturday, May 16, 2015
लेख-छत्तीसगढ़ की लोक संस्कृति एवं उसका भाषा माधुर्य
लेख- शकुंतला तरार
''छत्तीसगढ़ की लोक संस्कृति एवं उसका भाषा माधुर्य''
आदिकाल से ही प्रकृति की लोक लुभावनी रम्य छटा नीले -नीले अम्बर, चन्द्रमा की शीतल चांदनी, झिलमिलाते तारे, पेड़ - पौधों की हरियाली, रंग बिरंगे फूल, नदी-नाले, पर्वत, झरने, बादल-वर्षा, विराट जंगल, पर्वत श्रृंखलाएं, पक्षियों की चहचहाहट, भ्रमरों का सुर से सुर मिलाना, इन्द्रधनुषी सप्त रंग, चारों ओर बिखरा माधुर्य और सौन्दर्य मानवीय भावनाओं को झंकृत करने में सक्षम है | कहीं रहस्यात्मक अनुभूति तो कहीं प्राकृतिक उल्लास की गहरी छाप और इसी अनुभूति उल्लास की आल्हादकारी अभिव्यंजना के मध्य पुष्पित पल्लवित होती है यह छत्तीसगढ़
की लोक संस्कृति |
लोक संस्कृति
चाहे किसी भी प्रदेश की हो उसका संरक्षण, संवर्धन लोक कलाओं के माध्यम से होता है।
लोक साहित्य की परंपरा मौखिक होती है, वह क्षेत्रीय भाषा के सहारे, विगत के सहारे, पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित होते हुए शब्द मञ्जूषा में कैद होकर भविष्य के
लिए सुरक्षित, संरक्षित होता है तथा यह देश काल परिस्थितियों के अनुसार निरंतर
विकसित होता है| जीवन यापन, जीविकोपार्जन, कार्य कलाप संघर्ष, दुःख पीड़ा, तनाव आदि
समस्याओं से मुक्त होकर एक पारिवारिक एवं स्वच्छंद वातावरण में आनंद और उल्लास के
साथ शनै-शनै विकसित होकर पुष्पित, पल्लवित होता है यही उसका
उज्ज्वल पक्ष है।
जब
हम छत्तीसगढ़ की संस्कृति की बात करते हैं तब हम स्वभावतः उन क्षेत्रीय परम्पराओं
की ओर आकर्षित होते हैं जिनमें यहाँ के रीति-रिवाज़ परम्पराएँ, उत्सव ,
व्रत,त्यौहार, कर्मकांड, वेशभूषा एवं बोलियाँ सभी सम्मिलित होते हैं जो छत्तीसगढ़
की संस्कृति को एक मानक स्वरूप प्रदान करते हैं |
छत्तीसगढ़ी लोक साहित्य में यहाँ के
रीति-रिवाज़ एवं संस्कारों की अहम् भूमिका है जंत्र-मन्त्र, टोना-टोटका, का
अधिकाधिक प्रयोग ग्रामीण अंचलों में देखने को मिलता है। संभव है कि आदिकाल से ही मानव ने अपने मन में
छुपे हुए भय के कारण ही यह मार्ग अपनाया होगा जो कि आज हमारे सम्मुख अंधविश्वास के
रूप में खड़ा है | वैसे इतिहास के पन्ने यदि हम पलटकर देखें तो हमें ऐसा प्रतीत
होता है कि प्राचीन काल से ही मानव सहनशील एवं परिश्रमी रहा है | वैदिक काल से ही चली
आ रही तपोवन संस्कृति ने, ऋषि-मुनियों की तपोभूमि को, लोक परंपरा को, पथप्रदर्शक के रूप में अग्रेसित
किया है | तभी तो द्वारकाधीश होने पर भी कृष्ण को ब्रज नहीं बिसरता | उनकी लीलाएँ,
ललित कलाएँ, लोक कला ही तो हैं। राम को
अपना रामत्व विभिन्न लोक समुदायों के बीच ही प्राप्त होता है| तुलसी की चौपाइयाँ
सूर और कबीर के पद लोगों की जुबान पर ऐसे बस गए जैसे वे बहुत शिक्षित हों किन्तु
जिन्हें अक्षर का तनिक भी ज्ञान नहीं। तभी तो तुलसी कहते हैं -----
लोकहूँ वेद विदित सब
काहू |
लोकहूँ वेद सुसाहिब
रीति ||
अर्थात --जहाँ लोक की
रीति ही सुसाहिब की रीति है यानि लोक के मानदंडों से ही कोई सुसाहिब हो सकता है, होता है जहाँ रीति का
निर्धारण लोक का वेद करता है साहिब नहीं| वेद, पुराण, महाभारत, रामचरित मानस,
यहाँ तक की अभिज्ञान शाकुंतलम और मेघदूत सब वन में वास करने वालों के द्वारा रचे
गए | श्रीरामचंद्र जी जब तक इस संसार में रहे अधिकतर समय वनवासियों के साथ ही रहे,
फिर चाहे वह गुरुकुल हो या वनवास का समय या फिर शासन काल में हनुमान जी का साथ
रहा हो |
विराट महानदी-चित्रोत्पला की कल-कल पावन धारा
के तट पर स्थित शिवरीनारायण रामायण के युग की याद दिलाता है वहीँ श्री कृष्ण लीला
पर खेली जाने वाली रास जिसे हम रहस के
नाम से संबोधित करते हैं ग्राम नरियरा की पहचान बन चुका है। रावत
नाच बिलासपुर, तो ककसाड, लेजा, मारी रोसोना, चईत परब बस्तर की विशेष पहचान
है वहीं, सरहुल सरगुजा तथा कर्मा, ददरिया, सुवा, समस्त छत्तीसगढ़ की पहचान
है, तो पंथी नृत्य -गीत जाति विशेष को रेखांकित करता है |
अतः लौकिक, पारलौकिक, धार्मिक, राजनीतिक,
सामजिक क्षेत्र का मानव मन जो प्रभाव ग्रहण करता है और उसे आत्मसात करता है वहीँ
पर संस्कृति का निर्माण होता है। छत्तीसगढ़
की संस्कृति में कलात्मकता की भावना पग-पग पर दृष्टिगोचर होती है | भाषा का माधुर्य
इतना प्रबल है कि आज पूरे विश्व में छत्तीसगढ़ के लोक साहित्य के प्रति सभी का
आकर्षण बना हुआ है, यहाँ की संस्कृति अति प्राचीन है किन्तु
लिखित साहित्य की कमी अभी भी खटकती है | हमारा
लोक संगीत अभी भी गतिशील है | यहाँ लोक साहित्य, लोक संगीत, लोक नृत्य-गीत,
लोक कलाएँ यानि कि ललित कलाएँ समृद्धि एवं सामर्थ्य से परिपूर्ण हैं अतिथि देवो भव से परिपूर्ण छत्तीसगढ़ में
विनम्रता, निश्छलता,सहनशीलता जहाँ कूट-कूट कर भरी हुई है वहीँ सरलता और शालीनता की
शीतल-शीतल छाँव के तले मेहमान की आत्मा स्वयं धन्य हो उठती है | गाली देने में भी
यहाँ शिष्टता का ही आभास होता है | यहाँ
के लोक जीवन की अपनी अलग विशिष्टताएं हैं जिनमें रहन-सहन, खान-पान, पहनावा
में सादगी है तो वहीँ कृषि संस्कृति से भरपूर यह धान का कटोरा परम्पराओं और विश्वासों की
संस्कृति है |
शकुंतला
तरार
प्लाट न.-32,सेक्टर-2, एकता नगर गुढ़ियारी रायपुर (छ.ग.)
मो-09425525681, 077708105567 Friday, May 15, 2015
Saturday, May 9, 2015
काव्य संध्या का आयोजन
इस बार कोंडगांव में सबसे पहले मैं श्री हरिहर वैष्णव से मिली, जहां बस्तर के लोक साहित्य और लेखन को लेकर वृहत चर्चा हुई, दूसरे दिन शाम श्री यशवंत गौतम के घर पर पुनः सार्थक चर्चा हुई अगले दिन अचानक श्री चितरंजन रावल जी का मेरे यहाँ आगमन हुआ उन्होंने बड़े ही आदर के साथ कहा कि छत्तीसगढ़ हिन्दी साहित्य परिषद जिला कोडागांव ईकाई द्वारा मेरे सम्मान मे एक काव्य संध्या का आयोजन करना चाहते हैं मैंने अपना अन्य कार्यक्रम स्थगित कर उस गरिमामय आयोजन का हिस्सा बनना स्वीकार किया ...... कार्यक्रम का संचालन शुरू में मेरा परिचय देकर मेरे स्कूल के गुरु श्री सुरेन्द्र रावल अध्यक्ष छ॰ग॰ हिन्दी साहित्य परिषद ने किया बाद का संचालन कवयित्री बरखा भाटिया ने किया इस कार्यक्रम के अध्यक्ष श्री टी एस ठाकुर के अलावा डॉ॰ राजाराम त्रिपाठी, हरेन्द्र यादव,वरिष्ठ शायर हयात जी, यशवंत गौतम, के अलावा नगर के कवि-कवयित्री एवं प्रबुद्ध जन उपस्थित थे ॥यह मेरा सौभाग्य था कि मैं अपने ही मायके में बतौर मुख्य अतिथि उपस्थित थी......डॉ। राजाराम त्रिपाठी द्वारा पुस्तकों और मोमेंटो से मेरा सम्मान किया गया.....
Monday, April 27, 2015
महिला उत्पीड़न समिति में चयन
खुशी के पल--
कार्य स्थल पर महिला उत्पीड़न की रोकथाम हेतु अधिनियम 2013 के भाग -1- धारा -2- में निहित प्रावधान अनुसार छ॰ग॰ में भी शासन
स्तर पर समितियां गठित की गई हैं .... मित्रो हर्ष की बात है कि मेरा चयन जनसम्पर्क
संचालनालय छत्तीसगढ़ शासन (प्रदेश स्तरीय) की समिति ,जिला जनसम्पर्क
रायपुर (जिला स्तरीय )की समिति छत्तीसगढ़, के पश्चात ,
छ॰ ग॰ पाठ्य पुस्तक निगम (प्रदेश स्तरीय ) द्वारा गठित समिति में भी शामिल करके मेरा
सम्मान बढ़ाया है ।Thursday, April 16, 2015
Tuesday, March 3, 2015
बस्तर गीत -5
बस्तर गीत -5
बेलोसा
दिन निकलने के साथ ही
जाती है रयमति के घर
हाथ में उसके
एक टुकनी है
बगल में एक साल डेढ़ साल का बच्चा
बागा पाई है वो
रयमति भी वैसी ही टुकनी लेकर
निकलती है अपने घर से
अरे यही तो उनकी पूंजियों में से एक है
बाड़ी किनारे खड़े होकर
दोनों में थोड़ी देर कुछ बातचीत होती है
फिर चल देती है
वे दोनों
गाँव से बाहर
जाते- जाते -जाते चली जाती हैं
एक डोबरी के किनारे
फिर उस डोबरी के दलदल में उतरकर
करती हैं प्रयास
केसूर कांदा के लिए
कल
साप्ताहिक इतवार का बाजार है
कोंडागांव का
कुछ मिलेगा
तो नमक और कुछ जरुरी सामान भी लेना है
साथ में
बच्चे के लिए एक कमीज
ओह
दिन भर कीचड़ में
क्या परिश्रम है
और हम
उनसे मोल भाव करते हैं
चंद रुपयों के लिए ----शकुंतला तरार
बेलोसा
दिन निकलने के साथ ही
जाती है रयमति के घर
हाथ में उसके
एक टुकनी है
बगल में एक साल डेढ़ साल का बच्चा
बागा पाई है वो
रयमति भी वैसी ही टुकनी लेकर
निकलती है अपने घर से
अरे यही तो उनकी पूंजियों में से एक है
बाड़ी किनारे खड़े होकर
दोनों में थोड़ी देर कुछ बातचीत होती है
फिर चल देती है
वे दोनों
गाँव से बाहर
जाते- जाते -जाते चली जाती हैं
एक डोबरी के किनारे
फिर उस डोबरी के दलदल में उतरकर
करती हैं प्रयास
केसूर कांदा के लिए
कल
साप्ताहिक इतवार का बाजार है
कोंडागांव का
कुछ मिलेगा
तो नमक और कुछ जरुरी सामान भी लेना है
साथ में
बच्चे के लिए एक कमीज
ओह
दिन भर कीचड़ में
क्या परिश्रम है
और हम
उनसे मोल भाव करते हैं
चंद रुपयों के लिए ----शकुंतला तरार
Wednesday, February 25, 2015
Sunday, February 22, 2015
छत्तीसगढ़ी गीत -आमा मऊरागे -
''आमा मऊरागे''
आमा मऊरागे ना
कोयली आज कुहके आमा डारी मा
पींयर सरसों हरियर पाना
सरसों के फूल ह लिखत हे बाना
नदिया नरवा मा ना
मातगे हे चिखला आमा डारी मा
आमा मऊरागे ना
कोयली आज कुहके आमा डारी मा
मया जोरे के दिन ये आये
नाता मितानी के दिन ये आये
मया पीरित ह ना
जीव लेवा होगे आमा डारी मा
आमा मऊरागे ना
कोयली आज कुहके आमा डारी मा
Wednesday, February 11, 2015
गीत - जवान
" जवान"
इस देश की आन-बान-शान हैं जवान,
सिख-ईसाई-हिन्दू-मुसलमान हैं जवान ||
लहराता है परचम दुनिया और देश में,
ये नींव हैं इस देश का अभिमान हैं जवान ||
देश की आन को सीमा पर डटे हुये,
राष्ट्र की उन्नति का वरदान हैं जवान ||
स्वर्णाक्षरों में नाम है देश के इतिहास में,
सरहद के ये प्रहरी हैं निगहबान हैं जवान ||शकुंतला तरार ||
इस देश की आन-बान-शान हैं जवान,
सिख-ईसाई-हिन्दू-मुसलमान हैं जवान ||
लहराता है परचम दुनिया और देश में,
ये नींव हैं इस देश का अभिमान हैं जवान ||
देश की आन को सीमा पर डटे हुये,
राष्ट्र की उन्नति का वरदान हैं जवान ||
स्वर्णाक्षरों में नाम है देश के इतिहास में,
सरहद के ये प्रहरी हैं निगहबान हैं जवान ||शकुंतला तरार ||
Subscribe to:
Posts (Atom)