Sunday, April 14, 2013

'' अनबूझ  बस्तर ''
अबूझमाड के
 न बूझ  सकने वाले घने जंगल की तरह
 घने उसके बाल
 केशकाल की बलखाती घाटी की तरह
 उसकी कमर
अप्रतिम सौन्दर्य की मलिका
गोंचा पर्व के तुपकी की तरह
 सजे संवरे अधखुले देह
 फिर
परिजनों के लिए वह आराध्य
देवी दंतेश्वरी की तरह,
 न कोई छल
 न पिपासा
आखिर वह है कौन
वह!
वह है
 बस्तरियों की बहु, बेटी , और माँ .......
शकुंतला तरार ..1 4 -0 4 -2 0 1 3 ''मेरा अपना बस्तर '' काव्य संग्रह से 
 राष्ट्रपति भवन मौरिशस की कुछ यादें