Saturday, December 19, 2020

छत्तीसगढ़ में गांधी जी के सौ वर्ष

 छत्तीसगढ़ में  गांधी जी के सौ वर्ष


बीसवीं सदी का प्रारंभ छत्तीसगढ़ के लिए बहुत ही कांटों भरा सफर था। अंग्रेजी हुकुमत का दमन चक्र जारी था। रानी सुवर्ण कुंवर और लाल कालेन्द्र सिंह द्वारा सेना के नेतृत्व का दायित्व गुण्डाधुर को दिया जाना इस बात का संकेत था कि अब बस्तरियों का आजादी के संग्राम में मरने मिटने का समय आ गया है। इधर अंग्रेज चाहते थे कि बस्तर के आदिवासियों में फूट डालकर उनका शोषण कर उन्हें गुलाम बनाकर रखा जाए वहीं बस्तर के आदिवासियों ने ईस्ट इंडिया कंपनी और ब्रिटिश प्रशासन के खिलाफ अनेकों बार सशस्त्र क्रांति हुई थी किंतु 1910 की अंतिम क्रांति ने अंग्रेजी शासन को हिला कर रख दिया था ब्रिटिश कूटनीति के तहत यदि गुण्डाधुर की सेना के साथ विश्वासघात न किया गया होता तब परिस्थति उस वक्त कुछ और होती | उसी साल  सोनाखान के जमींदार वीर नारायण सिंह ने भी अंग्रेजी शासन के विरूद्ध क्रांति का शंखनाद कर दिया था जिसकी परिणति 10 दिसंबर 1857 में ही उनकी शहादत के साथ शिथिल हो गई थी। इन सबका असर छत्तीसगढ़ के जनमानस में था ही क्योंकि हमारे वीरों और शहीदों के दमन के लिए ब्रिटिश हुकुमत की मदद के लिए नागपुर, जबलपुर, जैपुर ,विशाखापट्टनम आदि स्थानों से सैन्य दलों का छत्तीसगढ़ में प्रवेश करना भी था।


इन सबका असर वृहद रूप से छत्तीसगढ़ के सभी हिस्सों में पड़ा। 1914 में धमतरी के माडमसिल्ली गांव के पास अंग्रेजों ने सीता नदी पर एक बांध का निर्माण किया और उसी के संचित जल को महानदी में बहाकर रूद्री में एक और बांध का निर्माण किया गया जिससे कृषि कार्य के लिये जल की आपूर्ति संभव हो सके। किंतु नहर विभाग को इससे पर्याप्त आय नहीं मिल पा रहा था इसलिए सिंचाई विभाग के द्वारा किसानों को नहर के पानी से सिंचाई के बदले दस वर्षों का एग्रीमेंट जिसमें आबपाशी के लिए 4304 रूपये सिंचाई कर देना पड़ता। अगस्त 1920 में नहर विभाग ने एक साजिश के तहत नहर की नाली काट कर गांव के पूरे खेतों में पानी बहा दिया ताकि गांव वालों पर पानी चोरी का आरोप लगाकर कर वसूल किया जा सके। किंतु ईश्वर की अपार महिमा थी कि उसी रात घनघोर वर्षा हुई और साजिश असफल हो गया किंतु ब्रिटिश प्रशासन ने फिर भी पानी चोरी का अभियोग लगाकर 4304 रूपये नहर पानी का लगान तय किया। इस कुत्सित कार्य के लिए पैसा न पटाने पर किसानों के मवेशियों को नीलाम कर पैसा वसूल करने का कार्य किया जाने लगा किंतु कर्मचारियों के पहुँचने से पूर्व ही स्वयंसेवकों की टोलियाँ पहुँच कर अंग्रेजों की इस मानसिकता के खिलाफ प्रचार कर देते। धमतरी के बाजार से इसकी शुरूआत की गई थी किंतु वहाँ विरोध स्वरूप नीलामी न हो पाने से मवेशियों को आसपास के बाजारों में ले जाने लगे। यहाँ भी  नीलामी न हो पाने की स्थिति में मवेशियों के खाने-पीने की समुचित व्यवस्था न हो पाने की स्थिति में मवेशी मरने लगे बीमार होने लगे। अंत में ब्रिटिश प्रशासन ने इस विरोध के कार्य में संलग्न बाबू छोटेलाल श्रीवास्तव और उनके चचेरे भाई लालजी बाबू एवं अन्य राष्ट्र भक्तों को गिरफ्तार करने में जुट गई।


इधर सत्याग्रह और असहयोग आंदोलन को व्यापक रूप देने महात्मा गांधी पूरे देश के दौरे पर निकले थे और उस वक्त वे कलकत्ता में थे। तब बाबू छोटेलाल श्रीवास्तव के द्वारा एक सभा बुलाई गई जिसमें राजिम से पं. सुंदरलाल शर्मा, नारायण राव फड़नवीस मेघावाले, बाबू छोटेलाल श्रीवास्तव ने संबोधित किया और वहीं यह तय किया गया कि पं. सुंदरलाल शर्मा को महात्मा गांधी को लाने के लिए कलकत्ता भेजा जाय क्योंकि, उसी वक्त गांधी जी के कलकत्ते में होने की जानकारी प्राप्त थी। इस तरह 02 दिसंबर 1920 को पं. सुंदरलाल शर्मा ने कलकत्ता के लिए प्रस्थान किया।


इधर जब ब्रिटिश प्रशासन को असहयोग आंदोलन और सत्याग्रह के बारे में जानकारी हुई तो वे चैकन्ने हो गए इससे पूर्व की गांधी जी का रायपुर और कंडेल (धमतरी) आगमन हो उससे पहले ही रायपुर से संबंधित विभाग के अधिकारी को भेजकर वस्तुस्थिति की जानकारी मंगाई गई जहाँ यह साबित हो गया कि वहाँ के नहर की नाली काटकर किसानों के खेतों तक रात भर में पानी ले जाना संभव ही नहीं था इस तरह उन्हें अमानवीय अविवेकपूर्ण तरीके से लगाए जा रहे समस्त लगान को माफ करना पड़ा।


 पं. सुन्दरलाल शर्मा ने गांधी जी से मिलकर उन्हें छत्तीसगढ़ की इस पावन धरा पर आने का आमंत्रण लेकर जो गए थे उसे महात्मा गांधी जी ने स्वीकार कर लिया और फिर वह अविस्मरणीय क्षण भी आ गया जब 20 दिसम्बर 1920 को रायपुर की पावन धरा पर सत्यता के पुजारी अहिंसा के पैरोकार जन-जन के हृदय में बसने वाले मोहनदास करमचंद गांधी यानि महात्मा गांधी का आगमन हुआ।


वे आए और रायपुर के एक मैदान में उन्होंने अपार जनसमूह वाले सभा को संबोधित किया। इसी चौक को इसी स्थान को आज हम गांधी चौक के नाम से जानते हैं। वहाँ से महात्मा गांधी धमतरी गए जहाँ रायपुर से लेकर धमतरी तक रास्ते में पड़ने वाले सभी गाँवों में पुष्पमाला, फूलों की वर्षा और जय जय कार के साथ उनका अभिनन्दन किया गया | धमतरी पहुंचकर गांधी जी ने वहाँ की सभा में लोगों को संबोधित किया दो घंटा रुकने के पश्चात् नत्थू जी जगताप के यहाँ उन्होंने फलाहार किया और वापस रायपुर आए ।


आज 20 दिसम्बर 2020 महात्मा गांधी जी के स्मरण का पावन दिन है जब उन्होंने छत्तीसगढ़ के इस पावन धरा को अपने चरण रज से और पावन किया। वंदे मातरम और भारत माता की जय से पूरा वातावरण गुंजायमान हो गया। धन्य है वे लोग जिन्हें महात्मा गांधी का सानिध्य मिला और धन्य है वे लोग जिन्होंने प्रत्यक्ष उनका दर्शन लाभ लिया और उनके बताए हुए मार्ग पर चलकर अपना तन-मन-धन सब न्यौछावर कर मां भारती की स्वतंत्रता के लिए अपना अमूल्य योगदान दिया जिनमें महिलाओं ने भी कदम से कदम मिलाकर उनका साथ दिया।

शकुंतला तरार  

संपादक-“नारी का संबल”

प्लाट नं.-32, सेक्टर-2, एकता नगर,

गुढ़ियारी, रायपुर (छत्तीसगढ़)

मो-9425525681,


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झांझ लेक नया रायपुर------कुछ दिन पूर्व
नया रायपुर में स्थित झांझ लेक में कुछ खुशनुमा पल बिताने का अवसर मिला । पहली बार जाना हुआ । बिटिया ने बहुत तारीफ की थी हालांकि उसने भी देखा नहीं था। गाड़ी उठाई गूगल गुरु की सहायता से जा पहुंचे उस गांव जहाँ यह झील है । मगर अद्भुत यहां तो 4 स्टार मेफेयर लेक रिसॉर्ट भी है और रिसॉर्ट के पीछे ही बरडिया और अग्रवाल परिवार के शादी समारोह की पार्टी की तैयारी














भी चल रही थी।नाव को फूलों से सजाया गया था नव दंपत्ति के लिए हमने नाव में बैठने का आनंद उठाया | हम वहां बहुत देर तक तो नहीं रुके जैसे ही बाहर निकले डॉ जे आर सोनी जी से भेंट हो गई वे विवाह समारोह में शामिल होने आए थे |
अगर आपको वहां जाना हो तो दिन से जाकर शाम को लौटें तो उस खूबसूरत नज़ारे को जी भर कर देख सकते हैं । इस खूबसूरती को हमने कैमरे में कैद किया है । मैं चाहूंगी मेरे जितने भी मित्र,जान -पहचान , रिश्तेदार सभी एक बार जरुर जाएं |
हर तरह का नाश्ता, भोजन उपलब्ध है बस मोटी रकम साथ हो |

Friday, May 29, 2020

दुनिया का सबसे छोटा रेलवे जंक्शन -बोरी डांड

दुनिया का सबसे छोटा रेलवे जंक्शन -बोरी डांड
कभी-कभी भूली बिसरी यादें मन को सुकून देती हैं , प्रकृति की गोद में सुकून भरी ऐसी ही एक जगह है छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश की सीमा रेखा पर दुनिया का सबसे छोटा रेलवे जंक्शन बोरी डाँड । बिजुरी से मनेन्द्रगढ़ चिरमिरी जाते हुए आप प्रकृति की इस अनुपम स्थली का अवलोकन कर सकते हैं । इस स्थान पर रेलवे काउंटर के अलावा एक झोपड़ीनुमा होटल है। इस होटल का बड़ा खाने के लिए बिजुरी और मनेन्द्रगढ़ से लोग आते हैं । लोगों की पिकनिक भी हो जाती है, शौक पूरा करते हैं साथ ही प्रकृति के मोहक स्वरूप का आनंद भी उठाते हैं । मैंने भी इस अवसर का लाभ उठाया । मुझे पता था कि जब तक बिटिया की यहां नौकरी है तभी तक आना होगा अन्यथा बिना कारण घर निकलना संभव होता नहीं। उसी अवसर का चित्र - बिटिया श्वेता द्वारा लिया गया ।
चित्र में ये शामिल हो सकता है: 1 व्यक्ति