''सावन की ये धूप ''
सावन की ये धूप
मैं
चंद क्षण खिड़की से
ओझल क्या हुई
झट चुरा ले गया कोई
''धूप''
अभी खिड़की में ,
आँगन में
उतरा भी न था
उसकी गर्माहट को मैंने
महसूसा भी न था
कि उसे
झट चुरा ले गया कोई
गीले ओसारे पे खड़ी -खड़ी
उस काले नभ को ताकती
टुकुर-टुकुर
रह-रह जब कौंधती बिजली
तो सारे शरीर में डर ?
सिहरन से भर उठता
लगता
कि ज़रूर उस काले कलूटे बादल के पीछे
कोई छलिया छुपा बैठा है
जो मुझसे आँख मिचौली खेलने के बहाने
मेरे आँगन की धूप
चुरा ले गया वोही
और मेरी झुंझलाहट पे
हँसता होगा छलिया सा
सावन की
इस क्षणिक धूप के लिए
अकुलाहट भरी मेरी हालत पे --शकुंतला तरार-22-07-14
सावन की ये धूप
मैं
चंद क्षण खिड़की से
ओझल क्या हुई
झट चुरा ले गया कोई
''धूप''
अभी खिड़की में ,
आँगन में
उतरा भी न था
उसकी गर्माहट को मैंने
महसूसा भी न था
कि उसे
झट चुरा ले गया कोई
गीले ओसारे पे खड़ी -खड़ी
उस काले नभ को ताकती
टुकुर-टुकुर
रह-रह जब कौंधती बिजली
तो सारे शरीर में डर ?
सिहरन से भर उठता
लगता
कि ज़रूर उस काले कलूटे बादल के पीछे
कोई छलिया छुपा बैठा है
जो मुझसे आँख मिचौली खेलने के बहाने
मेरे आँगन की धूप
चुरा ले गया वोही
और मेरी झुंझलाहट पे
हँसता होगा छलिया सा
सावन की
इस क्षणिक धूप के लिए
अकुलाहट भरी मेरी हालत पे --शकुंतला तरार-22-07-14