Tuesday, July 22, 2014

''सावन की ये धूप ''

''सावन की ये धूप ''
सावन की ये धूप 
मैं 
चंद क्षण खिड़की से 
ओझल क्या हुई 
झट चुरा ले गया कोई
''धूप'' 
अभी खिड़की में , 
आँगन में 
उतरा भी न था 
उसकी गर्माहट को मैंने
महसूसा भी न था
कि उसे
झट चुरा ले गया कोई
गीले ओसारे पे खड़ी -खड़ी
उस काले नभ को ताकती
टुकुर-टुकुर
रह-रह जब कौंधती बिजली
तो सारे शरीर में डर ?
सिहरन से भर उठता
लगता
कि ज़रूर उस काले कलूटे बादल के पीछे
कोई छलिया छुपा बैठा है
जो मुझसे आँख मिचौली खेलने के बहाने
मेरे आँगन की धूप
चुरा ले गया वोही
और मेरी झुंझलाहट पे
हँसता होगा छलिया सा
सावन की
इस क्षणिक धूप के लिए
अकुलाहट भरी मेरी हालत पे --शकुंतला तरार-22-07-14

Sunday, July 20, 2014

कवि सम्मलेन में भागीदारी

छत्तीसगढ़ राज्य के स्वप्नदृष्टा  डॉ. खूबचंद बघेल जी की जयंती अवसर पर कुर्मी छात्रावास में आयोजित कवि सम्मलेन में आमंत्रित  कविगण और श्रोता 











काव्य संध्या की अध्यक्षता की





छत्तीसगढ़ हिंदी साहित्य मंडल द्वारा आयोजित काव्य संध्या की अध्यक्षता करते हुए  साथ में मुख्य अतिथि डॉ. शिला गोयल एवं संस्था के अध्यक्ष इंजी. अमरनाथ त्यागी जी