Thursday, January 23, 2014

बस्तर---- गीत न-1 ''अभिव्यक्ति ''

बस्तर----  गीत न-1   
''अभिव्यक्ति ''
पहाड़ों के बीच से
 निकलती है  इक नदी
 निश्छल, 
निर्मल,
 शीतल जलधारा लिए 
अपनी मौज में वह  
बहती जाती है 
तट पर आये लोगों को  
अपनी शीतलता से ठंडक पहुँचाती 
ठीक  उसी तरह वह भी 
जीवन की  कुटिलता से परे 
 उन्मुक्त , 
निर्द्वंद्व,
 निष्कपट भाव से
 निकलती है जब  घर से
 तो न जाने कितने लोगों की  आँखों को 
पहुंचाती है ठंडक 
कुछ की आँखों में 
 उसकी खूबसूरती की  प्रशंसा 
कुछ कि या ज़यादा की आँखें 
वासनामयी 
परन्तु 
उसे इन सबसे 
कोई सरोकार नहीं 
 वह चलती जाती 
राह अपनी 
वह जा रही है 
देखो ! देखो तो !
अरे भई कहाँ ? 
महुआ बीनने 
नशा--
यहाँ तीन गुना हो गया है 
मदमाता यौवन,
 महुआ
 और 
 वसंत
 तीनों ने जीवन को
 नई  अभिव्यक्ति दी है 
मानो --------। 


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