Monday, March 17, 2014

दस दोहे ----फागुनी

दस दोहे ----फागुनी धीरे-धीरे बावरी, घूँघट के पट खोल कुंकुम पाती लिख रही, यह जीवन अनमोल ॥1 रंग अबीर गुलाल से, चुनरी भीजे अंग फागुन आया झूम के, मन में उठी उमंग॥ 2 इंद्रधनुषी रंगों में, रंगी पिया मैं आज , मनबतियाँ कासे कहूं, आवत मोहे लाज ॥ 3 गोरी रंग लगाय के, मन ही मन हरषाय गालों पर चिमटी करे, भर-भर थपपड खाय ॥ 4 छेड़ो न ऐसे मोहे, समझो भोली नार फागुनी पुरवाई है, रंगीली मनुहार ॥ 5 चन्दन मन शीतल हुआ, वंदन-वंदन नेह, फागुन-फागुन मन हुआ, कंचन-कंचन देह ॥ 6 हंसी ठिठोली फागुनी, मनवा कुलकत जाय धूम मची है फाग की, रंग अबीर उड़ाय ॥7 कलियाँ चुनचुन गूँथ लूँ, मैं इक अद्भुत हार चरणों में करदूं समर्पण, हुलियारों को प्यार ॥ 8 मुस्टंडा सा तू दिखे, मैं टेसू का फूल तिरछी जो नज़रें करे , तुझे चटाऊं धूल ॥ 9 नेह भरा अनुबंध है, अनुबंधी सिंगार आँख मिचौली फागुनी, फीकी लगे फुहार ॥ 10 शकुंतला तरार

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