''बूटी''हल्बी कविता मेरे काव्य संग्रह टेपारी से लिया गया है इसमें माँ की ममता का सुखद चित्रण किया गया है
''बूटी ''
बूटी हांडा
फ़क़त घोंडरते रएसे
कुधुर ने
जुड़ी चो दिन
पायं हात सोजे चड़पा झूमली
केभे जायसे राहेड़ बूटा खाले
केभय तिल पेटतो बाटे
आया के हेंडस करून खाई खाजा मांगे
नाहाले घोंडरून घोंडरून गागे
आया अये
दोंदो के कोरा ने धरे
चोक्कस नांय ले टोंड के चूमे
आरू
भीतरे नेउन
संगालो केसूर के
दूय ठान धराऊन दये
बूटी हांडा हरीक होये
आया के सरग चो सुख दीखे ........|
शकुंतला तरार
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