Wednesday, February 4, 2015

छत्तीसगढ़ी कविता --बिखहर

''बिखहर'' 
बिरबिट  करिया बिखहर
एक दिन धोखा ले
बस्ती माँ खुसरगे
वहू मेचका के पाछू -पाछू
ओला लिलेबर
 कब बस्ती माँ हबरगे
वो हा गम नई पाईस
फेर मनखे ओला देख डारिस
अउ छिन भर मा जुटगे भीड़
देख के डर्रागे बिखहर
खुसरगे पथरा के तीर
थोकन जघा  पाके
हेरो-हेरो ,
मारो-मारो के अवाज
मनखे तो मनखेच्च आय
हेर के ददे  दनादन ---
मरत बिखहर सोंचत हे
मयं तो एक ठी बिखहर
इहाँ तो कतको बिखहर
इंखर बर कोन ?

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