''नारी का अंतर्मन'' ‘2’
तुम अपना रंजो ग़म .... अपनी परेशानी मुझे दे दो,.... तुम्हें ग़म की क़सम ...इस दिल की वीरानी मुझे दे दो... | एक नारी जो बड़ी ही दरियादिली से यह इज़हार कर रही है एक पुरुष से
कि तुम अपनी सारी शिकायतें, अपने सारे ग़म सारी परेशानी ही मुझे दे दो गोया कि जैसे ग़म कोई खाने की वस्तु है इसने माँगा उसने दे दिया उसने
खा लिया और बात ख़त्म |
दरअसल बात यह कि नारी बहुत संवेदनशील होती है जीवन के हर संघर्ष के क्षणों में नारी ही पुरुष
को सम्हालती है यदि पुरुष उसे जरा भी समझने की कोशिश करे तो, नारी उसके आगे
नतमस्तक हो जाती है देखा जाय तो नारी ही परिवार की धुरी है और जब तक यह धुरी सही
चलेगी उस परिवार का कुछ भी अहित नहीं वाला है | जिस दिन भी इस धुरी को नुकसान
पहुंचाने की कोशिश की जाती है नारी चुप नहीं बैठ सकती |
नारी बड़े ही प्यार से अपना अधिकार चाहती है और वह अधिकार है प्यार | यदि
नारी को प्यार से रखा जाए तो वह भी आपको उससे दुगुना देने की कोशिश करेगी किन्तु
यदि आप उसे छलते हैं और अंतर्मन से वह दुखी होती है तो फिर वह ज़िद्दी बनाने लगती
है और तब शुरू होता है यहीं से आपस में टकराव |
यदि नारी अपने अधिकारों की बात करती है तो पुरुष के अहम् को चोट
पहुँचता है और वह उसे नीचा दिखाने का भरसक
प्रयत्न करता है| यहाँ अहं के टकराव के चलते आपसी तनाव बढ़ता है और अंत में बात
तलाक़ की नौबत तक आ जाती है |
पुराणों में जहाँ नारी का गौरवशाली इतिहास रहा है तो वहीँ इंद्र
द्वारा सती अहिल्या से छल, रावण का सीता माता को हरण कर के ले जाना, दुर्योधन
द्वारा द्रोपदी का चीरहरण जैसे कुछेक उदाहरण हैं जिससे आज भी मानव मन उद्वेलित
होता है | चाहे वह स्त्री हो या पुरुष |
फिर घर की नारी के लिए पुरुष के मन में उपेक्षा का भाव क्यों आ जाता है | शक्ति
स्वरुपा नारी आज भी कुंठित है, पीड़ित है,
प्रताड़ित है इसके लिए हमें पुनर्जागरण की आवश्यकता है और इस पुनर्जागरण के लिए
धधकता साहस चाहिए | नारी को दृढ़ निश्चयी बनना होगा आने वाले झंझावातों से लड़ने का
दमखम बनाए रखना होगा | तभी वह अपने मार्ग में आने वाले काटों को दूर कर एक नई और
सुन्दर फुलवारी का निर्माण कर सकेगी और रंजो ग़म मांगने के बदले यह कहेगी कि ये तेरा घर ये मेरा घर किसी को देखना हो
ग़र तो पहले आके मांग ले तेरी नज़र मेरी नज़र |
शकुंतला तरार
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