skip to main |
skip to sidebar
''नारी का अंतर्मन '' - मीरा
कृष्ण की दीवानी मीरा जब कहती
–मेरो तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई , जाके सिर मोर मुकुट मेरो पति सोई || जिसे न देखा, न
मुलाक़ात की, न बात की उसके लिए शिद्दत से इतनी चाह | यह सब मीरा के लिए ही संभव
था , जिसने प्रेम के मर्म को समझा | अपनी सहज, सरल अभिव्यक्ति के माध्यम से शब्दों
की ऐसी भाव रूपी माला पिरोती हैं कि आज भी जन-जन की लोकप्रिय बनी हुई हैं | मीरा
का प्रेम , मीरा का विरह, मीरा की टीस ने उन्हें अमर बना दिया | मीरा के प्रेम
रूपी पीड़ा का माध्यम , अंतर्मन में उपजी वह स्वाभाविक शब्दों की लड़ी थी जिसे पदों
में उद्धृत किया और साहित्य के आकाश में मीरा नाम रूपी एक ध्रुव तारा बनकर चमकने
लगी तभी तो गरल भी उनके लिए सुधा बनने को मजबूर हो गया | एक सुकुमारी रूपसी, एक
लावण्यमयी नारी जिसके रोम-रोम में प्रेम का सोता बह रहा हो उसे भला ये निष्ठुर
राजा –महाराजा क्या समझेंगे | नारी के
अंतर्मन को स्वयं नारी ही आज तक जान न सकी पहचान न सकी तो पुरुषों की क्या बिसात |वैसे
भी हमारे कुछ ऐसे रीति रिवाज़ हैं जो धर्म के नाम पर भय पैदा करवाते हैं मगर प्रेम
की दीवानी मीरा कृष्ण के प्रति अंतर्मन से समर्पित थी | वह दीन-दुनिया रीति–रिवाज़
से परे थी |
शकुंतला तरार
shakuntalatarar7@gmail.com
No comments:
Post a Comment