Wednesday, May 1, 2024

 बस्तर की संस्कृति में मंडिया पेज का महत्त्व 

बस्तर की संस्कृति में मंडिया पेज   

जब से मैंने होश सम्हाला सिर्फ इतना जाना कि हमारे भोजन में सुबह से चूल्हे पर एक बड़े से बर्तन में मंडिया का पेज बनाया जाता था | बाकी दिनों में यानि बारिश और ठण्ड के दिनों में घर में चावल के टुकड़ों  यानि कनकी जिसे आजकल खंडा कहा जाता है, का पेज बनता था और जैसे ही हल्की गर्मी पड़ना शुरू होता मंडिया का पेज जून माह तक बनता पूरे साल भोजन के साथ पानी की जगह पेज का सेवन करते | गर्मी की छुट्टियों में घर पर ही होते तो दोपहर बाद चार बजे के आसपास दुबारा पेज पीते हाँ रात को नहीं पीते थे | यह शरीर में ठंडक बनाए रखता है इसलिए रात को नहीं पीते थे भले ही बचा हुआ दूसरे दिन पी लें |अब  बात मंडिया की आजकल रागी के नाम से इसका चलन बढ़ गया है और अब तो मोटे अनाज और इसके वैज्ञानिक नाम के साथ इसकी उपयोगिता भी बताई गई है |

रागी या मंडिया क्‍या है?

रागी, भारत के साथ-साथ अफ्रीका की विभिन्न जगहों में उगाया जाने वाला एक मुख्य अनाज है। इसका वैज्ञानिक नाम एलुसीन कोरकाना (Eleusine coracana) है। यह भारत के प्रमुख अनाजों में से एक है। इसका उत्पादन भारत में सबसे अधिक कर्नाटक राज्य में किया जाता है। इसे कई अलग-अलग नामों से भी जाना जाता है जैसे हिंदी में रागी/मंडुआ / मंगल और तमिल में केझवारगु। वहीं, कन्नड और तेलुगु में भी इसे रागी ही कहा जाता है। यह फाइबर, प्रोटीन, पोटेशियम और कैल्शियम जैसे कई जरूरी पोषक तत्वों से समृद्ध होता है  ।  अभी शेष है ---

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