1अगस्त जन्म जयंती पर
''मीना कुमारी -प्यार के एहसास से दर्द के समंदर तक ''
टुकड़े -टुकड़े दिन बीता धज्जी-धज्जी रात हुई
जिसका जितना आँचल था उतनी ही सौगात मिली ।।
माहज़बीं बानो अर्थात मीना कुमारी असाधारण व्यक्तित्व की मलिका थीं । मीना कुमारी की नानी विश्व गुरु कविवर रविन्द्र नाथ टैगोर की भतीजी थी । मां प्रभावती देवी पारसी रंगमंच के कलाकार अलीबख्श से निकाह कर इकबाल बानो हो गईं । आशिक मिज़ाज पिता की वजह से परिवार आर्थिक तंगी के दौर से गुजरने लगा और गुड्डे गुडिया खेलने की उम्र में मीना कुमारी को संवादों से खेलना पड़ा ।
दर्द में डूबा हुआ इन्सान क्या चाहता है वह किसी की सहानुभूति या उसके स्पर्श मात्र से ज़िन्दगी के सरे गम भुला देना चाहता है । उसी को वह अपना मजबूत सहारा मान लेता है यही हुआ मीना जी के साथ भी । कमाल अमरोही की सहानुभूति ने दोनों को एक दूसरे के करीब ला दिया और दोनों ने इस रिश्ते को विवाह के बंधन में बांध लिया । मगर होनी को तो कुछ और ही मंजूर था तकदीर ने एक बार फिर से छला और दोनों अलग हो गए । फिर तो मीना ने अपने दर्द का साथी शराब को बना लिया कुछ इस तरह की कि '' दर्द में डूबा हुआ एक गीत अब मैं हो चली ।''
वही दर्द उनके द्वारा निभाए गए विभिन्न किरदारों में साफ नज़र आता है । भला साहिब बीवी और गुलाम की छोटी बहू को कभी भुलाया जा सकता है जिसमें उन्होंने एक ऐसी पत्नी का चरित्र निभाया जो पति के इंतजार में पलक पावडे बिछाये रहती है तरह-तरह के श्रृंगार कर उसे रिझाने का प्रयत्न करती है ;किन्तु बेवफा
पति उसे अकेली तडपता छोड़ जाता है | बहू बेगम की मीना स्मरणीय है । पाकीजा की मीनाकुमारी ने दर्द की उस सीमा को छुआ जहाँ तक पहुँचने के लिए आज की अभिनेत्रियाँ तरस जाती हैं । जो कुछ कहना है उसकी
भाव प्रणव आँखें ही सब कुछ कह जाती। उनके भीतर के उसी दर्द ने उनके किरदारों को उठाने में स्तम्भ के रूप में काम किया है ।
मीनाकुमारी जितनी ही अच्छी अदाकारा थीं उतनी ही अच्छी शायरा भी थीं उनकी गज़लें , उनके एक -एक
शेर , नज़्म ....ऐसा महसूस होता है जैसे एक-एक शब्द, एक-एक जज़्बात दर्द से निचोड़ कर लिखा गया हो ...वे कहती हैं ....
चाँद तन्हा है ये जहाँ तन्हा
दिल मिला है कहाँ कहाँ तन्हा
बुझ गई आस छुप गया तारा
थरथराता रहा धुआं तन्हा
मीना जी गुलज़ार साहब पर भरोसा किया करती थीं तभी तो उन्होंने अपनी सारी ग़ज़लों और नज्मों को
गुलज़ार साहब के नाम वसीयत कर दिया था और कहना न होगा कि गुलज़ार साहब ने भी उस वसीयत की पूरी देखभाल की , ...उसे दुनिया के आगे ला खड़ा किया '' मीना कुमारी की शायरी '' के नाम से हिन्द पॉकेट बुक्स ने उसे छापा है ........वे कहते हैं कि ....मैं , इस मैं से मैं बहुत डरता हूँ । शायरी मीना जी की है फिर मैं कौन? मीना जी की वसीयत में पढ़ा की अपनी रचनाओं , अपनी डायरियों के सर्वाधिकार मुझे दे गई हैं । हालांकि उन पर अधिकार उनका भी नहीं था, शायर का हक़ उनका शेर भर सोच लेने तक तो है ;कह लेने के बाद उस पर हक़ लोगों का हो जाता है । मीना जी की शायरी पर वास्तविक अधिकार तो उनके चाहने वालों का है और वह मुझे अपने चाहने वालों के अधिकारों की रक्षा का भार सौंप गई हैं ।
बतौर हिरोइन 1946 में उनकी पहली फिल्म ''दुनिया एक सराय '' से लेकर 1971 में आई पाकीज़ा तक का
लम्बा सफ़र उन्होंने तय किया । बैजू बावरा 1 9 5 4 , परिणीता 1 9 5 5 ,साहिब बीवी और गुलाम 1 9 6
3 और काजल 1 9 6 6 के लिए उन्हें फिल्मफेयर का सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार मिला था । वे एक सर्वश्रेष्ठ अदाकारा होने के साथ ही साथ एक अच्छी शायरा भी थीं ,उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए उन्हीं की चंद पंक्तियों से लेखनी को विराम देती हूँ कि ....
ये रात ये तन्हाई
ये दिल धड़कने की आवाज़
ये सन्नाटा
ये डूबते तारों की
खामोश ग़ज़ल रवानी
ये वक़्त की पलकों पर
सोती हुई वीरानी
जज़्बात ऐ मुहब्बत की
ये आखिरी अंगडाई
बजती हुई हर जानिब
ये मौत की शहनाई
सब तुम को बुलाते हैं
पल भर को तुम आ जाओ
बंद होती मेरी आँखों में
मुहब्बत का इक ख्वाब सजा जाओ .........। शकुंतला तरार
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