Saturday, January 10, 2015

सुनता है गुरु ज्ञानी .....संत कबीर के भजन

सुनता है गुरु ज्ञानी .....संत कबीर के भजन 

कोई सुनता है गुरु ज्ञानी गगन में,
आवाज हो रही झिनी झिनी - 
झीनी झीनी झीनी झीनी बिनी रे चदरिया  
पहिले  आये  नाद बिंदु से,
पीछे जमया पानी हो जी
सब घट पूरण बोली रह्या है,
अलख पुरुष निर्बानी हो जी - 1
 झीनी झीनी झीनी झीनी बिनी रे चदरिया 
वहां से आया पता लिखाया,
तृष्णा तौने बुझाई ..
अमृत छोडसो विषय को धावे,
उलटी फाँस फंसानी हो जी -2 
झीनी झीनी झीनी झीनी बिनी रे चदरिया 
गगन मंडलू में गौ भी आनी
भोई पे दही जमाया...
माखन माखन संतों ने खाया,
छाछ जगत बापरानी हो जी  -3 
झीनी झीनी झीनी झीनी बिनी रे चदरिया 
बिन धरती एक मंडल दीसे,
बिन सरोवर जूँ पानी रे
गगन मंडलू में होए उजियाला,
बोल गुरु-मुख बानी हो जी -4 
झीनी झीनी झीनी झीनी बिनी रे चदरिया 
ओऽहं सोऽहं बाजा बाजे,
त्रिकुटी धाम सुहानी रे 
इडा पिंगला सुखमन नारी,
सुनत भजन पहरानी हो जी -5 
झीनी झीनी झीनी झीनी बिनी रे चदरिया 
कहत कबीरा सुनो भई साधो,
जानी अगम के बानी रे..
दिन भर रे जो नज़र भर देखे,
अजर अमर वो निशानी हो जी -6
झीनी झीनी झीनी झीनी बिनी रे चदरिया 

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