संस्मरण—2----
कोंडागांव
बस्तर ---- बात उन दिनों की ---------जनपद
प्राथमिक शाला कोंडागांव
कक्षा दूसरी में --कक्षा दूसरी में मैं जब पढ़ रही थी हमारे कक्षा शिक्षक थे
प्रभात कुमार झा जी | उनका परिवार बिहार से आया था, सरगीपाल पारा में उनका मकान था
| झा गुरूजी बड़े ही सरल सहज इंसान लगते थे | हमारा स्कूल चूँकि पहली से पांचवी तक
ही था अतः पाँचों कक्षाएं ठंडी के दिनों में शनिवार को बाहर धूप में किसी पेड़ के
नीचे ब्लेक बोर्ड लगाकर ली जाती थी |एक बार की बात है ठंडी के दिन थे हमारी क्लास
स्कूल के बाहर धूप में लगाईं गई थी वहीँ टाटपट्टी लगाकर हम लोग बैठे थे शनिवार का दिन होने से
सुबह की कक्षा थी |तब झा गुरूजी ने हमें हू हू देवता की कहानी सुनाई थी जो हंसी से
भरपूर थी बचपन की सुनी हुई वह कहानी आज भी विचारों के साथ मन के किसी कोने में विचारों
का तानाबाना बुनता है | कहानी मुझे पूरी तो याद नहीं किन्तु इतना स्मरण है कि एक
साधु गाँव में आता है, ठंडी के दिन, पतियों को तो रात में तालाब स्नान करके आने को
कहता है और पत्नियों से कहता है कि घर में जब रात को हू हू देवता आयेंगे तो उनकी
डंडे से खूब पिटाई करना | पति लोग जब ठंडे पानी में तालाब स्नान करके आते हैं और
आवाज़ लगाते हैं तो ठण्ड के मारे उनकी आवाज़ निकलती नहीं और वे हू हू, हू हू करने लगते
हैं पहले से छुपाकर रखे हुए डंडे से पत्नियां दरवाजा खोलकर पतियों की पिटाई करती
हैं बस कहानी इतनी ही हुई थी पूरे क्लास में बच्चों की हंसी, कि स्कूल की छुट्टी
की घंटी बज गई और वह कहानी अधूरी रह गई | बचपन में सुना था इसलिए अभी बहुत कुछ छूट
रहा है पर अंत अधूरा रह गया इतना याद है | इसलिए शायद मैं झा गुरूजी को कभी भूल
नहीं पाई |
शेष फिर -----
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