खारुन नदी --स्वच्छता अभियान का सच
हमारे देश के प्रधानमंत्री
नरेंद्र मोदी जी जब हाथ में झाड़ू लेकर ‘स्वच्छ भारत’ मिशन की शुरूआत करने सड़कों पर उतरते हैं तो लोग इसे राजनीति से प्रेरित कहते हैं | दरअसल किसी भी बड़े काम की शुरुआत के लिए एक ऐसा चेहरा होना चाहिए जो प्रसिद्ध है और जिसकी बातों को लोग मानते हों चाहे दिल से, दिमाग से या फिर मजबूरीवश | सोते हुओं को जगाने के लिए यह आवश्यक भी है |
2अक्टूबर, राष्ट्रपिता
महात्मा गांधी और पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री को उनकी जयंती के अवसर
पर श्रद्धांजलि अर्पित करने के बाद मोदी जी ने अपने मिशन की औपचारिक शुरूआत से
पहले मंदिर मार्ग स्थित वाल्मीकि बस्ती में खुद झाड़ू लगाकर एक फुटपाथ को साफ
किया. ज्ञात हो कि वाल्मीकि बस्ती सफाई कर्मियों की बस्ती है .उनके इस अभियान का उद्देश्य अगले पांच साल में पूरे देश में स्वच्छता कायम करना है. "स्वच्छ भारत"
मिशन के
तहत देशभर में केंद्र सरकार के करीब 31 लाख कर्मचारियों ने विभिन्न
सार्वजनिक कार्यक्रमों में स्वच्छता की शपथ ली. इसके अतिरिक्त,
राज्य
सरकार के लाखों कर्मचारियों से भी इस व्यापक अभियान का हिस्सा बनने को कहा गया | यह अब तक का सबसे बड़ा स्वच्छता
अभियान है जिस पर कुल 62 हजार करोड़ रूपये से अधिक का
खर्च आने का अनुमान है. प्रधानमंत्री मोदी ने इस दौरान कहा कि ‘स्वच्छ भारत’
अभियान ‘राजनीति से परे’
है और
देशभक्ति से प्रेरित है.
आलोचनाओं को खारिज करते हुए मोदी जी ने भारत को स्वच्छ बनाने में पूर्व की सभी सरकारों के प्रयासों को
स्वीकार किया. उन्होंने कहा, “मैं राजनीति की बात नहीं कर रहा..यह राजनीति से परे है. यह मेरी देशभक्ति
से प्रेरित है, न कि राजनीति से. हम यह राजनीति के उद्देश्य से नहीं कर रहे..मैं सच्चे दिल
से कहता हूं..यदि हम इसे राजनीतिक रंग देंगे तो हम भारत मां के साथ न्याय नही कर
पायेंगे|
एक तरफ जहाँ हमारे प्रधान मंत्री जी स्वच्छता अभियान पर जोर दे रहे हैं वहीँ रायपुर छत्तीसगढ़ और दुर्ग जिलों को जोड़ने वाली जीवन दायिनी खारुन नदी का सच यह है | गन्दगी, कचरा, लोगों के द्वारा विसर्जन का सामन और सबसे बड़ी बात यह कि गणेश विसर्जन और दुर्गा विसर्जन के बाद का कचरा आज तक यानि १७-जनवरी जब मैं इसके तट पर घूमने के उद्देश्य से गई थी पानी ऐसा कि हाथ लगाने को भी डर गई कि कहीं इन्फेक्शन न हो जाये | वहीँ उसी मलबे के ढेर में कुछ लोग जो गोताखोर थे और स्वयं को रायपुर टिकरापारा का बता रहे थे भोजन बना रहे थे यह उनका रोज का काम है कि दिन में उसी पानी में जाकर धार्मिक आस्था से प्रेरित लोगों द्वारा फेंके गए सिक्के और चाँद मीटर की दुरी स्थित श्मशान से बहाए गए रख में से निकले सोने या चांदी के कुछ कणों की तलाश में ये गोताखोर पूरा दिन लगा देते हैं कभी अच्छा मिल जाता है और कभी खुद के भोजन तक ही फिर भी ये अपना पूरा दिन इसी काम में लगा देते हैं और शाम ढलने से पहले भोजन पका खा कर घरों को लौट जाते हैं |
शकुंतला तरार
No comments:
Post a Comment