Friday, February 5, 2016

लेख-बस्तर दशहरा-काछिन देवी अर्थात शक्ति पूजा


3-बस्तर दशहरा-काछिन देवी अर्थात शक्ति पूजा
(सन्दर्भ-पारंपरिक बस्तर दशहरा पर्व)
शकुंतला तरार
बस्तर अंचल छत्तीसगढ़ प्रदेश का एक ऐसा भूभाग है जो न सिर्फ यहाँ निवासरत अनुसूचित जाति-जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग की जीवन शैली, धन-धान्य, खनिज सम्पदा, वन, लौह अयस्क आदि के लिए जाना जाता है अपितु विश्व में सबसे लम्बी अवधि 75 दिनों तक चलने वाले दशहरा उत्सव के लिए भी जाना जाता है | यह पूर्णतः राजनीतिकरण से दूर आंचलिक पर्व है जिसमें छुआछूत,जाति-पांति के लिए कोई स्थान ही नहीं है | गाँव अनुसार, परम्परानुसार सबके अपने-अपने काम बंटे हुए होते हैं, पूरा बस्तर संभाग इसमें अपनी सहभागिता देता है| महाराजा, माय दंतेश्वरी और बस्तर के प्रमुख बाकी सारे देवी-देवताओं के सम्मान का प्रतिनिधित्व करता है यह पर्व |
“यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता” यह पंक्ति यहाँ एकदम सही चरितार्थ होती है | इस पर्व की सबसे बड़ी विशेषता ही यह है कि यहाँ नारी शक्ति को विशेष महत्व प्राप्त है,चाहे वह महिषासुर मर्दिनी स्वरुपा देवी दंतेश्वरी हो या दशहरा उत्सव की प्रथम पूज्या देवी काछिन हो |
लगभग छै सौ वर्ष पुरानी इस परंपरा में दस दिन के दशहरे की शुरुआत काछिन गादी की परंपरा से होता है काछिन मिरगानों की देवी है जिसे दशहरा पर्व में विशेष गद्दी प्रदान की जाती है| स्थानीय बोली में इसे गादी कहते हैं यह गादी काँटों की होती है यानि उसमें कील लगे होते हैं जिस पर देवी को आसीन किया जाता है | मिरगान जाति जो नारायणपुर जिले के निवासी  हैं,(वर्तमान समय में जगदलपुर जिले में ही स्थापित हो चुके हैं) उनकी एक कुवांरी कन्या जिसकी उम्र लगभग 7-8 साल की होती है और जिसका चुनाव इस दैवीय कार्य के लिए उनका समाज स्वयं करता है, आश्विन (क्वांर) मास की अमावस्या के दिन पूरे राजकीय परम्परानुसार ससम्मानपारंपरिक वाद्यों के साथ कन्या का स्वागत सत्कार किया जाता है| जब कन्या पर देवी स्वयं सवार होती हैं तो पुजारी द्वारा देवी को गादी में आसीन किया जाता है जहां देवी की पूजा अर्चना की जाती है तत्पश्चात देवी प्रसन्न होकर  दशहरा का पर्व मनाने की अनुमति देती है |
जिस तरह आश्विन मास की अमावस्या को काछिन देवी की पूजा आराधना से बस्तर का दशहरा  शुरू होता है उसके बाद उसी आश्विन मास के शुक्ल पक्ष 12 यानि दो दिन पश्चात् दशहरा निर्विघ्न संपन्न होने की ख़ुशी स्वरूप ससम्मान विदाई के लिए काछिन जात्रा के द्वारा देवी का गुडी के समीप स्थित पूजामंडप में आवाहन किया जाता है और  उनको सम्मानित किया जाता है |
समय बदला लोग बदले किन्तु हमारे बीच विद्यमान कुछ प्राचीन परम्पराएं, संस्कृतियाँ हैं जो आज भी लोगों को जोड़े हुए है | नारी सम्मान का प्रतिनिधित्व करता है बस्तर का दशहरा  पर्व | परंपराओं, जनभावनाओं, संस्कृतियों की रक्षा करने उन्हें  बचाए रखने के लिए शासन का अपेक्षित सहयोग भी अवश्यम्भावी है |
एकता नगर,सेक्टर-2,प्लाट न.32, गुढ़ियारी रायपुर (छ.ग.)मो-9425525681

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